आज के इस पोस्ट मे मुहम्मद बिन कासिम की जीवनी इतिहास History of Muhammad Bin Qasim in Hindi के बारे मे जानेगे। इतिहास में कुछ लोग हमेशा याद किए जाते हैं, जब भी बात भारतीय इतिहास में जब भी विदेशी आक्रमणों की बात सामने आती है तो सबसे पहले आक्रमणकारी के रूप मे मुहम्मद बिन कासिम का नाम आता है, तो चलिये यहा मुहम्मद बिन कासिम का इतिहास जीवन परिचय युद्ध भारत पर आक्रमण और मृत्यु History of Muhammad Bin Qasim in Hindi Biography Jeevan Parichay Date Of Birth, Birth Place, Father, Mother, Wife Children, Fight, Death जानेगे.
प्रथम आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिम का इतिहास जीवन परिचय युद्ध भारत पर आक्रमण और मृत्यु
History of Muhammad Bin Qasim in Hindi
हमारे देश भारत पर बहुत पहले से ही अनेक हमले हुए। इन हमलों ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भारत को प्रभावित किया। भारत की इस स्थिथि और हालत में इन घटनाओं का योगदान है। अनेक हमले भारत के इस रूप को बदलने के लिए हुए पर वास्तव में कोई भी हमला या घटना भारत को बदल नहीं सके बल्कि भारत ने ही उन्हें अनेक प्रकार से परिवर्तित कर स्वयं में शामिल कर लिया। इस प्रकार बना स्वरूप ही आज हमारे समाज में देखने को मिलता है। इन्ही ऐतिहासिक घटनाओं और हमलों में मोहम्मद बिन कासिम का हमला गिना जाता है। यह भारत पर अरबों के हमलों का शुरुआती दौर था।
‘मुहम्मद बिन कासिम का इतिहास’ चचनामा ग्रन्थ में मिलता है जिसे ‘फ़तेहनामा हिन्द’ के नाम से भी जाना जाता है, ‘चचनामा ग्रन्थ की रचना’ अली अहमद के द्वारा की गई थी परन्तु कुछ इतिहासकार मानते हैं कि ‘चचनामा ग्रन्थ’ की सर्वप्रथम रचना किसी अज्ञात व्यक्ति के द्वारा अरबी भाषा में की गई थी, ‘चचनामा ग्रन्थ का फ़ारसी में अनुवाद’ अबू बकर अली कूफ़ी के द्वारा किया गया था, सर्वप्रथम मुहम्मद बिन कासिम के द्वारा सिन्ध विजय का उल्लेख चचनामा ग्रन्थ में ही मिलता है,
मुहम्मद बिन कासिम का जीवन परिचय
Muhammad Bin Qasim Biography in Hindi
- पूरा नाम :- इमाद-उद-दीन मुहम्मद बिन क़ासिम बिन युसूफ़ सकाफ़ी (मुहम्मद बिन कासिम)
- उप नाम :- मीर कासिम
- जन्म तिथि : – 31 दिसम्बर 695 ई.
- जन्म स्थान : – सऊदी अरब के ताईफ़ शहर
- पिता का नाम : – कासिम बिन यूसुफ़
- चाचा :- हज्जाज बिन युसूफ़
- पत्नी का नाम :– जुबेदाह
- मृत्यु : – 18 जुलाई 715 ई.
मुहम्मद बिन कासिम का जन्म एवं प्रारंभिक जीवन
Birth and Early life of Muhammad Bin Qasim in Hindi
मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) का पूरा नाम इमाद-उद-दीन मुहम्मद बिन क़ासिम बिन युसूफ़ सकाफ़ी था। मोहम्मद बिन क़ासिम (Muhammad Bin Qasim) का जन्म सउदी अरब में स्थित ताइफ़ शहर के अल-सक़ीफ़ क़बीले में हुआ था। मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) के पिता कासिम बिन युसूफ़ का जल्द ही देहांत हो गया। इसके बाद कासिम के चाचा हज्जाज बिन युसूफ़ ने जो की इराक़ के गवर्नर थे, उसने ही कासिम को युद्ध और प्रशासन की कलाओं से अवगत कराया और एक बेहतरीन सैनिक के रूप में उसे तैयार किया। उसने हज्जाज की बेटी यानि अपनी चचाज़ात बहन ज़ुबैदाह से शादी कर ली थी।
वह इस्लाम के शुरूआती काल में उमय्यद ख़िलाफ़त का एक अरब सिपहसालार था। उसने महज़ 17 साल की उम्र में मरकान तट के रास्ते भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी इलाक़ों पर हमला करने के लिए भेजा गया था।
मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) का विजय अभियान भारतीय उपमहाद्वीप में आने वाले मुस्लिम राज का एक बुनियादी घटना-क्रम माना जाता है। कासिम ने ही सर्वप्रथम भारत पर जजिया कर लगाया था, लेकिन इस कर से बच्चे, अपाहिज, साधु-सन्त, ब्राह्मण एवं महिलाओं को मुक्त रखा गया।
मोहम्मद बिन कासिम का सिंध (भारत) पर आक्रमण
Muhammad bin Qasim invasion of Sindh in Hindi (India)
710 ई. में इराक के गवर्नर हज्जाज बिन युसूफ़ के आदेश पर मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) ईरान के शिराज़ शहर से 6000 सैनिकों और 3000 ऊँट (जिस पर जरुरत का सारा सामान मौजूद था) के साथ पूर्व की ओर रवाना हो गया। जब वह मकरान पंहुचा तो वहाँ के गवर्नर ने उसे 6000 ऊँट और कई सैन्य दस्ते दे कर के उसकी मदद की। उस समय मकरान पर अरबों का राज था।
मुहम्मद बिन कासिम का देबल की विजय
Muhammad bin Qasim conquest of Debal
मकरान के बाद 711 ई. में उसने सिंध में प्रवेश किया उस समय सिंध पर राजा दाहिर सेन की हुक़ूमत थी। वहाँ उसने देबल की बंदरगाह जो उस ज़माने में सिंध की सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह में शुमार थी उस पर हमला किया वहाँ उसे हज्जाज बिन युसूफ़ द्वारा भेजे गए समुद्री दस्ते की भी मदद मिली। मोहम्मद बिन कासिम ने देबल की बंदरगाह को पूरी तरह से फतह कर लिया।
इसके बाद कासिम ने देबल शहर का रुख किया यहाँ पर देबल शहर के सैनिकों ने जम कर इसका मुकाबला किया। शुरुआती मुकाबले में शहर की फौज अरब फौजों पर भरी भी पड़ रही थी। शहर के बीच एक 120 फिट ऊँचा एक मंदिर था। इस मंदिर में महात्मा बुद्ध समेत कुछ देवताओं की मूर्तियां रखी थीं। इस मंदिर के ऊपर एक झंडा लगा हुआ था।
शहर के लोगों का मानना था जब तक ये झंडा मंदिर पर लहराता रहेगा कोई लश्कर उनके शहर को जीत नहीं सकेगा। उनका मानना था की अरबों के पहले लश्कर इसी वजह से नहीं जीत सके थे लेकिन इस बार शहर में मौजूद एक तो एक ब्राह्मण ने दाहिर से विश्वासघात किया और जाकर तावीज का रहस्य अरबों को बता दिया जिन्होंने झण्डे के बाँस को निशाना बनाकर झण्डे और तावीज को झट नष्ट कर दिया। इस बात ने अंधविश्वासी भारतीयों की निरुत्साहित और निराश कर दिया,
इसके बाद मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) ने अपने लश्कर में मौजूद एक बहुत ही माहिर सिपाही को बुलाया और कहा की अगर तुम ये मंदिर तोड़ दो तो मै तुम्हें 10,000 दिरहम दूंगा तो जवाब में उस सिपाही ने कहा की अगर मै 3 पत्थरों से से गुम्बद न तोड़ सका तो मेरे हाथ काट देना। थोड़ी देर बाद ही कासिम के इस सिपाही ने 2 पत्थरों से मंदिर का झंडा समेत गुम्बद को तोड़ दिया।
मंदिर का गुम्बद टूटते ही शहर वालों का हौसला भी टूट गया और वह कासिम के सामने कमजोर पड़ने लगे और अंत में उन्होने मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) के सामने अत्म्सपर्पण कर दिया।
आखिरकार अरब लोगों ने देबल पर अधिकार जमा लिया और वहाँ एक भयानक रक्तपात आरंभ हुआ जो तीन दिन तक चलता रहा लोगों को कहा गया कि इस्लाम स्वीकार करो, नहीं तो मार डाले जाओगे और बहुतों ने मरना स्वीकार किया।
और शहर के द्वार अरब फौजों के लिए खोल दिया गया यहाँ मोहम्मद बिन कासिम ने देबल का कैदखाना तोड़ कर सभी अरब कैदओं को आज़ाद करा लिया और शहर में 4000 अरबों को बसा दिया।
कहा जाता है कि 17 वर्ष के ऊपर के सब पुरुष मौत के घाट उतार दिये गये और उनकी स्त्रियाँ और बच्चे दास बना लिये गये। लूटमार का बहुत-सा माल अरबों के हाथ लगा। जिसका पाँचवाँ हिस्सा हजाज के द्वारा खलीफा को भिजवा दिया गया।
मुहम्मद बिन कासिम का निरुन, सेहवन और सीसम पर अधिकार
Muhammad bin Qasim authority over Nirun, Sehwan and Sisam
इसके बाद आगे बढ़ते हुए कासिम की फौज ने रास्ते में नेरून और सहवान शहरों पर भी अपना कब्ज़ा कर लिया। इन शहरों से मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) ने बहुत से कैदी और खजाना हज्जाज बिन युसूफ़ के पास भेजा और कुछ खजाने का कुछ हिस्सा फौजों में भी बांटा गया। धीरे – धीरे कासिम ने पश्चिमी सिंध के सभी छोटे कबीलों और सुबो को जीत लिया। यहाँ उसे राजा दाहिर से नाराज जाटों और बोद्धो का पूरा सहयोग मिला इनके मिल जाने से अरब फौजों की स्थिति पहले से और भी ज्यादा मजबूत हो गयी।
राजा दाहिर और मुहम्मद बिन कासिम का युद्ध
Battle of Raja Dahir and Muhammad bin Qasim in Hindi
अब तक राजा दाहिर की तरफ से हमले की कोई कोशिश नहीं की गयी इसकी वजह राजा दाहिर के दरबार में मौजूद अरब थे। उन्होने राजा दाहिर से कह रखा था की वो इस लश्कर का मुकाबला न करे क्योंकि इस लश्कर में बहुत बड़े – बड़े अरब बहादुर मौजूद हैं और लश्कर में मौजूद एक शख्श ऐसा भी है जो खास आपको क़त्ल करने के इरादे से पूरी तैयारी के साथ आया है।
पश्चिमी सिंध पर सफलतापूर्वक कब्ज़ा करने के बाद मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) सिंधु नदी पार कर के रोहड़ी पंहुचा। वहाँ उसका मुकाबला सीधे राजा दाहिर सेन और उनके सैनिकों से हुआ, यहाँ राजा दाहिर खुद हाथी पर सवार होकर जंग के मैदान में था। शुरुआती मुकाबले में राजा दाहिर की फौज अरब फौजों पर भरी पड़ रही थी।लेकिन थोड़ी ही देर में अरबों की सेना ने राजा दाहिर पर वार करना शरू कर दिया।
अरबों के एक सिपाही का जलता हुआ तीर राजा दाहिर के हाथी को लगा और हाथी जख्मी हालत में सिंधु नदी में कूद गया उसके बाद राजा दाहिर जैसे ही हाथी के पालकी से बाहर निकला वैसे ही अरब लश्करों ने उन पर तीर से हमला कर दिया और राजा दाहिर मारा गया। राजा के मरते ही उसका लश्कर रोहड़ी के किले में भाग गया और किले के दरवाज़े बंद कर लिए इस लश्कर की संख्या करीब 15000 थी।
इस किले में राजा दाहिर की पत्नी रानी बाई भी मौजूद थी जिसके बारे में कहा जाता है के ये राजा की सगी बहन थी जिससे राजा ने शादी की हुयी थी। अब अरब लश्करों ने किले पर हमला किया। रानी बाई ने कई दिनों तक अरब लश्करों से मुकाबला करती रहीं लेकिन जैसे ही अरब लश्करों ने किले की दीवारों को तोड़ दिया वैसे ही रानी बाई किले में मौजूद सभी औरतों के साथ खुद का जौहर (आग के हवाले ) कर लिया। इसके बाद राजा दाहिर का बेटा जयसेना चित्तौड़ की तरफ भाग गया।
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मुहम्मद बिन कासिम का ब्राह्मणावाद की विजय
Muhammad Bin Qasim Victory of Brahmanism in Hindi
जब अरब ब्राह्मणावाद पहुँचे तब दाहिर के बेटे जयसिंह ने ब्राह्मणावाद की प्रतिरक्षा में सैनिक जुटाए और शत्रुओं का डटकर मुकाबला किया। कोई 8000 हिन्दू मारे गये परन्तु कम-से-कम उतने ही शत्रु भी नष्ट हुए। जयसिंह किसी तरह बचकर निकल गया।
मुहम्मद कासिम ने नगर पर अधिकार कर लिया और सारे धनकोष को अपने कब्जे में ले लिया। यहीं ब्राह्मणावाद में ही दाहिर की एक और विधवा रविलादी और उसकी दो सुन्दर लड़कियाँ सूर्यदेवी और परमलदेवी शत्रुओं के हाथ लगीं।
पूरे सिंध पर मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) का कब्ज़ा हो गया ब्राह्मनाबाद और मुल्तान को भी कासिम ने जीत लिया। यहाँ से मुहम्मद बिन क़ासिम ने सौराष्ट्र की तरफ भी अपने सैन्य दस्ते भेजे लेकिन राष्ट्रकूटों के साथ उसकी संधि हो गई। उसने बहुत से भारतीय राजाओं को ख़त लिखे की वे इस्लाम अपना लें और आत्म-समर्पण कर दें। उसने कन्नौज की तरफ भी 10000 सैनिकों की एक टुकड़ी भेजी लेकिन कूफ़ा से उसे वापस आने का आदेश आ गया और उसे यह विजय अभियान रोकना पड़ा।
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मुहम्मद बिन कासिम का एलोर पर अधिकार
Muhammad bin Qasim possession of Elor
अब मुहम्मद-बिन-कासिम एलोर जिसे एरोड़ भी कहते थे, की ओर बढ़ा। वह उस समय सिन्ध की राजधानी था। यहाँ दाहिर के एक और बेटे फूजी ने शत्रु का सामना किया परन्तु उसकी हार हुई। एलोर की विजय के साथ सारे सिन्ध की विजय मुकम्मल हो गई।
मुहम्मद बिन कासिम का मुलतान की विजय
Muhammad bin Qasim conquest of Multan
713 ई. के आरंभ में मुहम्मद-बिन-कासिम मुलतान की ओर बढ़ा। उसकी राह में जिस किसी ने उसका विरोध किया उन सबको हराते हुए वह अन्त में मुलतान के द्वार पर जा पहुँचा। कहते हैं कि देबल की तरह इस महत्त्वपूर्ण नगर की भी हार इस कारण हुई कि एक गद्दार ने धोखा दिया और शत्रु को वह नदी बता दी जहाँ मुलतान के लोग पानी पिया करते थे। मुहम्मद ने बड़ी चालाकी से जल-प्राप्ति का वह स्रोत काट डाला और लोग प्यासे मरने लगे।
इस प्रकार उसे बड़ी सुगमता से नगर पर विजय प्राप्त हो गई और उसने खूब लूटमार मचाई, लोगों को मारा और कितनों को दास बना लिया। अरब लोगों को यहाँ से इतनी दौलत मिली कि वे मुलतान को सोने का नगर समझने लगे।
मुलतान की विजय के बाद मुहम्मद बिन कासिम ने कन्नौज को जीतने की तैयारी आरंभ कर दी परन्तु उसकी अचानक दुःखदायी मौत ने भारत में अरबों की अधिक विजय पर रोक लगा दी ।
भारत पर अरब आक्रमण के कारण
Reasons for Arab invasion of India
भारत पर अरबों के आक्रमण का प्रमुख और तत्कालिक कारण यह था की श्रीलंका के राजा द्वारा उमय्यद खलीफा के लिए उपहार ले कर जा रहे 8 समुद्री जहाज़ों को देबल की बंदरगाह पर डाकुओं द्वारा लूट लिया गया। इस जहाज़ में सवार कुछ मुस्लिम औरतों को देबल के कैदखाने में कैद कर दिया गया।
जब इस बात की जानकारी इराक के गवर्नर हज्जाज बिन युसूफ़ को हुयी तो उसने राजा दाहिर को खत लिख कर मुसलमान कैदी रिहा करने और लुटे गए माल का जुर्माना भरने का आग्रह किया। लेकिन जवाब में राजा दाहिर ने लिखा की वे समुद्री डाकू उसकी पहुँच से बाहर हैं और उन पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है लिहाज़ा मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकता। राजा के इस इनकार करने के बाद ही हज्जाज बिन यूसुफ़ ने सिंध पर हमला करने का निर्देश दे दिया।
मुहम्मद बिन कासिम के आक्रमण का भारत पर प्रभाव
Impact of Muhammad bin Qasim invasion on India
हम इस अध्याय को अरबों द्वारा किए गए आक्रमण का महत्वपूर्ण हिस्सा मान सकते हैं। इसकी वजह से इस्लाम का आगमन भारत में हुआ। इससे भारत में नई संस्कृति का प्रादुर्भाव हुआ। हालाँकि भारतीय संस्कृति की सबसे खास बात यह है कि यह सभी को स्वयं में समाहित कर लेती है। इसके साथ भी यही हुआ।
परन्तु इसका सबसे नकारात्मक प्रभाव यह था कि अब अरब आक्रमणकारियों के लिए भारत का दरवाजा खुल चुका था और इस वजह से एक बड़ी सांस्कृतिक विध्वंस भी हुआ। लाखों धर्म परिवर्तन, हजारों मंदिरों का विध्वंस तथा बड़ी मात्रा में लूट भी हुए। इस तरह इस आक्रमण ने भारतीय इतिहास को एक ऐतिहासिक मोड़ दिया।
मुहम्मद बिन कासिम की मृत्यु
Death of Muhammad bin Qasim in Hindi
मोहम्मद बिन क़ासिम (Muhammad Bin Qasim) सिंध में अपने अरब साम्राज्य के विस्तार की तैयारी कर ही रहा की इसी दौरान हज्जाज बिन युसूफ़ की मृत्यु हो गई और इसके एक वर्ष बाद ही ख़लीफ़ा अल-वलीद प्रथम का भी देहांत हो गया। इसके बाद अल वलीद का छोटा भाई सुलयमान बिन अब्द-अल-मलिक अगला ख़लीफ़ा बना।
सुलयमान के रिश्ते हज़्ज़ाज़ से बिलकुल भी अच्छे नहीं थे हज़्ज़ाज़ की तो मृत्यु हो ही चुकी थी। उसने फ़ौरन हज्जाज के वफ़ादार सिपहसालारों, मुहम्मद बिन क़ासिम और क़ुतैबाह बिन मुस्लिम, को वापस बुला लिया। और याज़िद बिन अल-मुहल्लब को किरमान, फ़ार्स, मकरान तथा सिंध का नया गवर्नर नियुक्त कर दिया । याज़िद को कभी हज्जाज बिन यूसुफ़ ने बंदी बनाकर काफी प्रताड़ित किया था इसलिए उसने तुरंत मोहम्मद बिन क़ासिम (Muhammad Bin Qasim) को बंदी बनाकर बेड़ियों में डाल दिया।
फतह-नामे -सिंध किताब (चचनामा) के अनुसार मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) ने राजा दाहिर सेन की बेटियों परिमला और सूर्या को तोहफ़ा में अरब ख़लीफ़ा के पास भेज दिया था। जब वह खलीफा के दरबार में पेश हुयी तो उन्होंने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए खलीफा से कहा कि मुहम्मद बिन क़ासिम (Muhammad Bin Qasim) पहले ही उनकी इज़्ज़त लूट चूका है और अब ख़लीफ़ा के पास भेजा है। यह सुन कर खलीफा नाराज हुआ और मुहम्मद बिन क़ासिम को बैल की चमड़ी में लपेटकर वापस दमिश्क़ मंगवाने का आदेश दे दिया उसी चमड़ी में बंद होकर दम घुटने की वजह से मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) की मौत हो गयी लेकिन जब ख़लीफ़ा को पता चला कि बहनों ने उससे झूठ बोला था तो उसने उन्हें ज़िन्दा दीवार में चुनवा दिया।
दूसरी कहानी के अनुसार के अनुसार ईरानी इतिहासकार बलाज़ुरी के अनुसार अरब का नया ख़लीफ़ा सुलयमान बिन अब्द-अल-मलिक हज्जाज बिन यूसुफ़ का दुश्मन था। उसने हज्जाज के सभी सगे-सम्बन्धियों पर कठोर कार्यवाही की । मुहम्मद बिन क़ासिम (Muhammad Bin Qasim) को भी सिंध से वापस बुलवाकर इराक़ के मोसुल शहर में बंदी बना दिया गया। वहाँ उसपर कठोर व्यवहार और पिटाई के कारण उसने दम तोड़ दिया।
मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) के मौत की अब जो भी कहानी रही हो लेकिन उसको महज 20 वर्ष की आयु में ही अपने खलीफा द्वारा ही मरवा दिया गया। उसकी कब्र भी आज तक अज्ञात है। यह एक तारीखी हकीक़त है कि मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) को फतेह सिंध के साथ ही कत्ल कर दिया गया।
इसका एक राजनैतिक कारण यह भी था की जिस तरह से मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) सिंध पर अपने अधिकार को बढ़ा रहा था और जिस तरह से सिंध के लोगो ने उसे अपना हुक्मरान समझना शुरू कर दिया था उससे खलीफा वलीद बिन अब्दुल मलिक को यह ख्याल आया कि कहीं वह सिंध में अपनी खुद की हुक़ूमत ना कायम कर ले। और इसी दौरान राजा दाहिर की लड़कियों का मामला सामने आ गया तो खलीफा को कासिम को वापस बुलाने का मौका भी मिल गया इसका जिक्र उस दौर में लिखी गयी किताब फतह-नामे -सिंध किताब (चचनामा) में भी मिलता है।
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