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महमूद गजनबी का इतिहास जीवन परिचय युद्ध भारत पर आक्रमण और मृत्यु | History of Mahmud Ghaznavi in Hindi

आज के इस पोस्ट मे महमूद गजनबी की जीवनी इतिहास History of Mahmud Ghaznavi in Hindi के बारे मे जानेगे। इतिहास में कुछ लोग हमेशा याद किए जाते हैं, जब भी बात भारतीय इतिहास में जब भी विदेशी आक्रमणों की बात सामने आती है तो एक विदेशी आक्रमणकारी जिसका नाम महमूद गजनी था का नाम हमारे दिमाग में आता है उसके आतंक और विध्वंस की कहानी हमारे आँखों के सामने आ जाती है जिसने सोमनाथ के पवित्र मंदिर में शिवलिंग को तोडा और मन्दिर को ध्वस्त करने कि कोशिश की इसके अलावा उसने भारत में अनेक मन्दिरों को तोडा जिसके कारण लोग मुर्तिभन्जक कहने लग गये थे, तो चलिये यहा महमूद गजनबी का इतिहास जीवन परिचय युद्ध भारत पर आक्रमण और मृत्यु History of Mahmud Ghaznavi in Hindi Biography Jeevan Parichay Date Of Birth, Birth Place, Father, Mother, Wife Children, Fight, Death जानेगे.

महमूद गजनबी का इतिहास जीवन परिचय युद्ध भारत पर आक्रमण और मृत्यु

History of Mahmud Ghazni in Hindi

History of Mahmud Ghaznavi in Hindiमहमूद गजनवी का जन्म अफगानिस्तान के गजनी में 02 नवम्बर 971 (लगभग) ईस्वी में हुआ था। उसके पिता सबुक्तगिन एक तुर्क सरदार थे, जिसने गजनी साम्राज्य की नींव रखी थी। उसकी माँ एक ज़बुलिस्तान के एक कुलीन परिवार की बेटी थी। महमूद बचपन से भारतवर्ष की अपार समृद्धि और धन-दौलत के विषय में सुनता रहा था। उसके पिता ने एक बार हिन्दू शाही राजा जयपाल के राज्य को लूट कर प्रचुर सम्पत्ति प्राप्त की थी, महमूद भारत की दौलत को लूटकर मालामाल होने के स्वप्न देखा करता था। वे अपने पिता के साथ कई युद्धों में भाग लिया। इसी प्रक्रिया के दौरान ग़ज़नी के सिंहासन पर महमूद (998-1030) बैठा।  27 वर्ष की अवस्था में वह अपने पिता के राज्य का स्वामी बना। वह अजाम का प्रथम सुल्तान माना जाता है,

मध्ययुगीन इतिहासकारों ने मध्य एशिया के क़बीलाई आक्रमणकारियों से वीरता से संघर्ष करने के कारण महमूद को इस्लाम का योद्धा माना है। इसके अलावा इस समय ईरानी संस्कृति का जो पुनर्जागरण हुआ, उसके साथ महमूद का गहरा सम्पर्क था।

माना जाता है कि महमूद ने न केवल तुर्क क़बीलों के विरुद्ध इस्लामी राज्य की रक्षा की वरन् ईरानी संस्कृति के पुनर्जागरण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन भारत में वह केवल एक लुटेरे के रूप में याद किया जाता है। कहा जाता है कि महमूद ने भारत पर सत्रह बार आक्रमण किया। आरम्भ में उसने पेशावर और पंजाब के हिन्दू शाही शासकों के ख़िलाफ़ युद्ध किया। उसने मुल्तान के मुस्लिम शासकों के विरुद्ध भी युद्ध किया क्योंकि वे इस्लाम के उस सम्प्रदाय को मानने वाले थे जिनका महमूद कट्टर विरोधी था। हिन्दुशाही राज्य पंजाब से लेकर आधुनिक अफ़ग़ानिस्तान तक फैला हुआ था और उनके शासक ग़ज़नी में एक स्वतंत्र शक्तिशाली राज्य से उत्पन्न होने वाले ख़तरों को बखूबी समझते थे। हिन्दुशाही शासक जयपाल ने समानी शासन के अंतर्गत भूतपर्व गवर्नर के पुत्र के साथ मिलकर ग़ज़नी पर चढ़ाई भी की थी, लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा। उसने अगले वर्ष फिर चढ़ाई की और फिर पराजित हुआ। इन लड़ाइयों में युवराज के रूप में महमूद ने सक्रिय भाग लिया था।

महमूद गजनबी का जीवन परिचय

Mahmud Ghaznavi Biography in Hindi

  • नाम :- महमूद गजनबी / गजनी
  • उपनाम :– जबुली का महमूद
  • पिता का नाम : – सुबुक्तगीन
  • जन्म तिथि : – 2 नवम्बर 971 ईस्वी
  • जन्म स्थान : – ग़ज़नी (अफ़ग़ानिस्तान )
  • मृत्यु : – 30 अप्रैल 1030
  • भाई का नाम :– इस्माइल
  • धर्म :– सुन्नी मुसलमान
  • शासकाध्यक्ष – 998
  • राजतिलक :– 6 1002  ईस्वी में
  • सुल्तान की उपाधि धारण करने वाला : – महमूद पहला शासक
  • भारत पर आक्रमण किए :– कुल 17 आक्रमण
  • भारत पर आक्रमण का मुख्य उद्देश्य :– भारत की धन संपदा को लूटना
  • खलीफा से सम्मान उपाधि प्राप्त करने के बाद शपथ ली – भारत पर प्रत्येक वर्ष आक्रमण करने की
  • दरबारी इतिहासकार :– उत्बी
  • प्रथम आक्रमण :– 1000ईस्वी में सीमावर्ती नगरों पर
  • अंतिम आक्रमण :– जाटों और खोखरों को दंड देने हेतु
  • उपाधियां :– भारत का पहला सुल्तान, यमीन-उद- दौला, अमीन-उल-मिल्लत

महमूद गजनबी का जन्म एवं प्रारंभिक जीवन

Birth and Early life of Mahmud Ghaznavi in Hindi

महमूद गज़नवी का पूरा नाम ‘यामीन उद दौलाह अब्दुल कासिम महमूद इब्न सुबुक्तगीन’ था, महमूद गजनवी का जन्म 2 नवम्बर 971 ईस्वी  अफ़गानिस्तान के गज़नी में हुआ था, जिस समय गजनवी का राज्यारोहण हुआ था उस समय उसकी उम्र 27 वर्ष की थी, महमूद गजनवी की माता जबुलिस्तान के सरदार की पुत्री थी,

महमूद को बचपन से इस्लामी ढंग शिक्षा मिली थी, उसको कुरान हदीस तथा सरई नियमों से अच्छी तरह परिचित था, महमूद का कद माध्यम तथा शरीर हृष्ट पुष्ट था परन्तु वह चेहरे से कुरूप था, महमूद गज़नवी का राज्याभिषेक’ संभवता 1002 ई. में हुआ था क्योंकि पिता के द्वारा बांटे गए साम्राज्य से वह ख़ुश नहीं था, महमूद गज़नवी ने अपने छोटे भाई इस्माइल को पराजित करके उसके सम्पूर्ण साम्राज्य को अपने अधीन कर लिया था |

महमूद ग़ज़नवी की गणना एशिया के महानतम मुस्लिम शासकों में से एक है, महमूद गजनवी का राज्य बहुत ही विशाल था, उसके राज्य का विस्तार इराक तथा कैस्पियन सागर से गंगा तक फैला हुआ था,

महमूद गजनवी बचपन से ही बहुत महत्वाकांक्षी था, वह बहुत ही कुशाग्र बुद्धि का था, ऐसा कहा जाता है की जब खलीफा ने महमूद के पास मान्यता पत्र  भेजा, उस समय उसने प्रतिज्ञा की कि मैं प्रति वर्ष भारत के काफिरों पर आक्रमण करूंगा,

महमूद ग़ज़नवी का राज्याभिषेक

Coronation of Mahmud Ghaznavi in Hindi

सुबुक्तगीन जो कि अलप्तगीन का दास था भारत पर आक्रमण करने वाला प्रथम तुर्की शासक था  सुबुक्तगीन के दो पुत्र थे महमूद और इस्माइल इसमें महमूद बड़ा और इस्माइल छोटा पुत्र था शुरू से ही सुबुक्तगीन का अपने छोटे पुत्र इस्माइल के प्रति ज्यादा स्नेह था इस कारण उसने अपना उत्तराधिकारी अपने छोटे पुत्र इस्माइल को घोषित किया| महमूद यह सब सहन करने के लिए तैयार नहीं था उसने इस्माइल को गजनी देकर और बल्ख अपने पास रखकर राज्य का विभाजन करने का सुझाव दिया लेकिन इस्माइल इससे सहमत नहीं हुआ अंत में महमूद ने इस्माइल को एक युद्ध में परास्त कर बंदी बना लिया और अपने पिता के राज्य पर अधिकार कर लिया|

महमूद गज़नवी का भारत पर आक्रमण

Mahmud Ghaznavi invasion of India in Hindi

जिलगी बार भारत पर आक्रमण किए। सामान्यतः यह बताया जाता है कि महमूद ने भारत इतिहासकारों में गज़नवी के भारत अभियानों की संख्या को लेकर आपस में मतभेद है | अलग-अलग विद्वान गजनवी के आक्रमणों की संख्या अलग-अलग मानते हैं | सामान्यत: यह माना जाता है कि महमूद गजनवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया | अपने प्रत्येक अभियान में वह सफल रहा | संक्षेप में महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमणों का विवरण इस प्रकार है —

पहला आक्रमण – सीमावर्ती नगरों और दुर्गों पर अधिकार

(Capture of Frontier Towns and. Forts)

महमूद गज़नवी ने पहला आक्रमण 1000 ई. में अपने साम्राज्य के आस – पास के राज्यों पर किया था जिसमें कुछ राज्यों पर विजय भी हासिल की थी |

दूसरा आक्रमण – जयपाल से युद्ध, 1001 ई०

(Battle against Jaipal, 1001 A.D.)

महमूद गज़नवी ने दूसरा आक्रमण 1001 ई. में पंजाब के हिन्दूशाही राजा जयपाल के विरुद्ध किया था | पेशावर के पास दोनों सेनाओं के मध्य युद्ध जिसमें जयपाल की पराजय हो गई थी,

महमूद का यह पहला महत्वपूर्ण अभियान था, जिसमें उसने हिन्दुशाही वंश के शासक जयपाल पर हमला किया। उसके इतिहासकारों ने जयपाल को ‘अल्लाह का शत्रु’ (The Enemy of God) करार दिया है। सुलतान ने चुने हुए 15,000 घुड़सवारों के साथ आक्रमण किया। यह युद्ध पेशावर के समीप 2 नवम्बर, 1001 को लड़ा गया। जयपाल ने 12,000 घुड़सवारों, 30,000 पैदल सेना तथा 50 हाथियों के साथ महमूद का मुकाबला किया।

इस युद्ध में जयपाल पराजित हुआ तथा उसे अपने पुत्रों, पौत्रों तथा सम्बन्धियों सहित बन्दी बना लिया गया। जयपाल को अपमानित किया गया। एक बड़ी राशि दी तथा 50 हाथी महमूद के सुपुर्द करने पर उसे छोड़ दिया गया। जयपाल इस अपमान को सहन नहीं कर सका तथा यह बताया जाता है कि अपने पुत्र आनन्दपाल को राज्य की बागडोर सौंपकर 1002 ई० में पराजय का अपमान न सह पाने के कारण जयपाल ने स्वयं चिता में जल कर आत्महत्या कर ली थी,

तीसरा आक्रमण – भेरा आक्रमण, 1003 ई०

(Invasion on Bhera, 1003 A.D.)

महमूद गज़नवी ने तीसरा आक्रमण 1003 ई. में भेरा (वर्तमान नाम उच्छ) के राजा बजरा (वास्तविक नाम बाजीराम) के विरुद्ध किया था, यह युद्ध 1003 ई० में महमूद ने झेलम के किनारे पर स्थित भेरा पर आक्रमण किया। भेरा राज्य के शासक विजयराय ने महमूद का चार दिन तक डटकर विरोध किया, परन्तु वह असफल रहा। महमूद ने भेरा को बुरी तरह लूटा तथा अनेक लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। भेरा को गजनी के राज्य में मिला लिया गया। यह स्थान बाद में आक्रमणों में महत्वपूर्ण आधार बना।

चौथा आक्रमण – मुलतान की विजय

(Conquest of Multan)

महमूद गज़नवी ने चौथा आक्रमण 1005 ई. में मुल्तान के शिया शासक फ़तेह दाउद के विरुद्ध किया था, गजनवी का मुलतान पर आक्रमण महत्वपूर्ण था। यहाँ पर फतेह दाऊद शासक था। वह शिया मत को मानता था तथा महमूद कट्टर सुन्नी मुसलमान था । मुलतान पर अधिकार कर वह आगे के आक्रमणों का मार्ग सुगम बनाना चाहता था। फतेह दाऊद ने आनन्दपाल से सहायता माँगी। आनन्दपाल ने मार्ग में विरोध भी किया, परन्तु उसे एक तरफ कर दिया गया। दाऊद भी पराजित हुआ तथा उसने 20,000 दरहम वार्षिक कर देना स्वीकार किया।

पांचवां आक्रमण – नवासाशाह की हार

(Defeat of Nawasashah)

महमूद गज़नवी ने पांचवां आक्रमण 1005 – 6 ई. में आनंदपाल के पुत्र सुखपाल या सेवकपाल के विरुद्ध किया था, जो की मुलतान विजय के अवसर पर गज़नवी ने आनन्दपाल के पुत्र सुखपाल को पकड़ लिया था तथा उसने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। गज़नवी ने उसे मुलतान का गवर्नर भी नियुक्त किया था, परन्तु नवासाशाह ने कुछ समय बाद बगावत कर दी तथा अपने आपको स्वतन्त्र घोषित कर दिया। इस कारण महमूद ने उसको दण्डित करने के लिए पुनः मुलतान पर आक्रमण किया। सुखपाल ने अन्य शासकों से सहायता मांगी, परन्तु उसे कोई सहायता नहीं मिली परिणामस्वरूप वह पराजित हो गया तथा महमूद ने उसे बन्दी बनाकर कारावास में डाल दिया।

छठा आक्रमण – आनन्दपाल की हार

(Defeat of Anandpal)

महमूद गज़नवी ने छठा आक्रमण 1008 ई. में हिन्दूशाही राजा आनंदपाल के विरुद्ध किया था जिसमें आनंदपाल के द्वारा दिल्ली, अजमेर, उज्जैन, ग्वालियर, कन्नौज, कालिंजर की संयुक्त सेनाओं का संघ बनाया था परन्तु महमूद गज़नवी ने सभी को पराजित कर दिया था,

सुलतान महमूद आनन्दपाल के खिलाफ युद्ध करने के लिए दिसम्बर, 1008 ई० में गजनी से चला। हिन्दुशाही वंश प्रारम्भ से ही तुर्क आक्रमणों को झेल रहा था। आनन्दपाल गज़नवी के बढ़ते प्रभाव को कम करना चाहता था। दूसरा, उसने गज़नवी के अत्याचारों से बचने के लिए भारत के हिन्दू शासकों को सेएकत्र हो जाने की अपील की,

आनन्दपाल ने प्रयास करके महमूद गजनवी के खिलाफ भारतीय शासकों के संघ का निर्माण किया, इस संघ में उज्जैन, ग्वालियर, कन्नौज, कालिंजर, दिल्ली, अजमेर आदि क्षेत्रों के शासक शामिल हुए, खोखरों ने भी आनन्दपाल का साथ दिया। अटक के समीप ओहिन्द के स्थान पर दोनों पक्षों में भयंकर हुआ,

भारतीय शासक वीरता और साहस के साथ लड़े। महमूद की सेनाओं को बहुत अधिक क्षति उठानी पड़ी। युद्ध की स्थिति को देखकर महमूद भी निराश हो रहा था, परन्तु अचानक बारूद के फट जाने के कारण आनन्दपाल का हाथी बेकाबू हो गया तथा वह युद्ध क्षेत्र से आनन्दपाल को लेकर भाग गया। इससे भारतीय पक्ष में भगदड़ मच गई तथा इसकी वजह से महमूद की जीत हो गई। उसने भागती हुई भारतीय सेनाओं पर आक्रमण किया जसमें बड़ी संख्या में भारतीय सैनिक हताहत हुए। यह विजय महमूद की महत्वपूर्ण विजय थी। इस विजय से उसका अधिकार पंजाब पर स्थापित हो गया। दूसरी ओर भारतीय पक्ष द्वारा संयुक्त रूप से किया गया प्रयास भी विफल हो गया।

सातवाँ आक्रमण – नगरकोट पर आक्रमण, 1009 ई०

(Invasion on Nagarkot, 1009 A.D.)

महमूद गज़नवी ने सातवाँ आक्रमण 1009 – 10 ई. में नगरकोट के ज्वाला देवी मंदिर के विरुद्ध किया था जिसमें ज्वाला देवी के मंदिर को महमूद गज़नवी  के द्वारा बुरी तरह लूटा गया था,

पंजाब विलय के बाद महमूद ने हिमाचल में नगरकोट (काँगड़ा) पर आक्रमण किया। नगरकोट में एक प्रसिद्ध मन्दिर था जहाँ पर अपार धन एकत्र था। तीन दिन की घेराबन्दी के बाद नगरकोट का पतन हो गया। फरिश्ता के अनुसार, “टिड्डी दल की भाँति आती हुई शत्रु सेना को देखकर हिन्दुओं ने भयभीत होकर नगर के किले के दरवाजे खोल दिए। वे धरती पर इस प्रकार गिर गए जैसे बाज के सामने चिड़िया तथा आसमानी बिजली के सामने वर्षा की बूंदें।”

महमूद को नगर के मन्दिर से अपार धन सामग्री प्राप्त हुई। उतबी ने वर्णन किया है, “महमूद को बहुत ज्यादा धन प्राप्त हुआ। इस लूट के माल में चाँदी का कमरा, 700 मन सोने-चाँदी के बर्तन, 200 मन सोना, 2000 मन चाँदी और 20 मन हीरे जवाहरात शामिल थे।”

इस धन की महमूद ने गजनी पहुँचकर प्रदर्शनी लगाई जिसे दूर-दूर के लोग देखने आए। इस धन की प्राप्ति ने महमूद को भारत में मन्दिरों पर आक्रमण के लिए प्रेरित किया।

आठवां आक्रमण – मुलतान पर हमले

(Invasions on Multan)

महमूद गज़नवी ने आठवां आक्रमण 1011 ई. में दोबारा से मुल्तान के विरुद्ध किया था, अगले कुछ वर्षों में महमूद ने नारायणपुर (अलवर) में हमला किया। यहाँ उसने मन्दिरों को तोड़ा तथा धन लूटा। 1011 ई० में उसने मुलतान के शासक फतेह दाऊद को पुनः पराजित किया।

नौवां आक्रमण – थानेसर पर हमले

(Invasions on Thanesar)

महमूद गज़नवी ने नौवां आक्रमण 1012 ई. में हरियाणा के थानेश्वर में स्थित चक्रास्वामी मंदिर के विरुद्ध किया था जिसमें महमूद गज़नवी ने मंदिर में लूट पाट मचाई थी |

1012 ई० में उसने थानेसर पर आक्रमण किया, कुरुक्षेत्र में यह नगर हिन्दुओं की श्रद्धा का केन्द्र था। यहाँ पर अनेक मन्दिर स्थित थे। महमूद ने अचानक इस नगर पर हमला किया तथा चक्रस्वामी मन्दिर की मूर्ति को तोड़ा तथा वहाँ से अपार धन प्राप्त किया। नगर में कत्लेआम किया तथा जाते हुए चक्रस्वामी की मूर्ति को भी अपने साथ ले गया।

दसवां आक्रमण – त्रिलोचनपाल पर हमला

(Invasion on Trilochanpal)

महमूद गज़नवी ने दसवां आक्रमण लाहौर के हिन्दूशाही राजा त्रिलोचनपाल के विरुद्ध किया था और उस समय हिन्दूशाही राजवंश की राजधानी नंदनपुर में थी |

1008 ई० में आनन्दपाल की हार के बाद हिन्दुशाही वंश छोटे-से राज्य में बदल गया था, परन्तु आनन्दपाल ने हिम्मत नहीं हारी। उसने अपनी राजधानी नन्दानाह (Nandanah) (झेलम के समीप खेकड़ा की नमक खानों के पास) बदल ली। उसने अपनी सेनाओं को पुनर्गठित करने का प्रयास भी किया। यहाँ वह शान्तिपूर्वक मृत्यु को प्राप्त हुआ तथा उसके बाद त्रिलोचनपाल ने राज्य को सम्भाला।

ग्यारहवां आक्रमण- कश्मीर पर आक्रमण

(Invasion on Kashmir)

महमूद गज़नवी ने ग्यारहवां आक्रमण 1015 ई. में कश्मीर के विरुद्ध किया था जो एक असफ़ल आक्रमण था, बताया जाता है की 1014 ई० में महमूद ने त्रिलोचनपाल की राजधानी को घेर लिया। इस समय में त्रिलोचनपाल के पुत्र भीमपाल ने अहम् भूमिका निभाई। त्रिलोचनपाल ने कश्मीर के शासक के यहाँ शरण ली। महमूद ने उसका पीछा किया तथा दोनों की सेनाओं को हराया। महमूद ने कश्मीर की पारी में जाना उचित नहीं समझा तथा त्रिलोचनपाल भी पंजाब के शिवालिक क्षेत्र में आ गया तथा उसने बुन्देलखण्ड के शासक विद्याधर से सम्बन्ध स्थापित किए। महमूद ने इस गठबन्धन को तोड़ने के राम गंगा नामक स्थान पर उसे हराया। त्रिलोचनपाल के बाद भीमपाल हिन्दुशाही वंश का अन्तिम शासक हुआ जिसकी मृत्यु 1026 ई० में हुई।

बारहवां आक्रमण – मथुरा और कन्नौज की विजय, 1018 ई०

(Conquest of Mathura and Karmavi, 1018A.D.)

महमूद गज़नवी ने बारहवां आक्रमण 1018 ई. में कन्नौज के प्रतिहार राजा त्रिलोचनपाल के विरुद्ध किया था परन्तु उससे पहले महमूद ने बुलंदशहर, मथुरा और वृंदावन में लूट पाट मचाई थी,

महमूद की भारत की लड़ाइयों और विजयों में अन्य प्रसिद्ध विजय मथुरा और कन्नौज की विजय स्वीकार की जाती है। इसकी वजह यह है कि भौगोलिक दृष्टि से दोनों क्षेत्र गजनी से बहुत दूरी पर थे तथा दोनों क्षेत्र भारत के मध्य भाग गगा-यमुना के दोआब में स्थित थे। 1018 ई० में गजनी से चलकर मथुरा पर आक्रमण के इरादे से वह आगे बढ़ा। मथुरा उस समय के सम्पन्न नगरों में से था। पौराणिक पात्र श्रीकृष्ण का जन्म स्थल होने के कारण वह धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण था, नगर की सुरक्षा का प्रबन्ध था,

परन्तु यहाँ की सेनाओं ने आक्रमणकारी सेना का कोई विरोध नहीं किया। सुन्दर मथुरा नगर और मन्दिरों को महमूद ने खूब लूटा तथा बहुत-सी शुद्ध सोने की मूर्तियाँ तथा अपार सम्पत्ति मन्दिरों से प्राप्त हुई। उतबी ने इसका उल्लेख किया है। मथुरा को लूटने के बाद महमूद उत्तरी भारत की सत्ता के प्रसिद्ध केन्द्र कन्नौज की ओर बढ़ा, यहाँ पर गुर्जर प्रतिहार वंश का राज्यपाल नामक शासक था। वह महमूद के आक्रमण की खबर सुनकर शहर छोड़कर भाग खड़ा हुआ। महमूद ने मथुरा के समान कन्नौज को भी खूब लूटा। उसे यहाँ से उसकी कल्पना से भी अधिक धन सम्पत्ति प्राप्त हुई। इसे लेकर वह वापस गजनी चला गया।

तेरहवां आक्रमण – कालिंजर तथा ग्वालियर पर हमला, 1019 ई०

(Attack on Kalinjar and Gwalior, 1019 A.D.)

महमूद गज़नवी ने तेरहवां आक्रमण 1019 ई. में कालिंजर के राजा विद्याधर राव के विरुद्ध किया था, कालिंजर का शासक चन्देल वंशी गण्ड उस समय उत्तरी भारत के शक्तिशाली शासकों में से एक था। महमूद के वापस गजनी लौट जाने पर उसने कन्नौज के शासक राज्यपाल, जो कि महमूद के आक्रमण से डरकर भाग गया था, को दण्डित करने के लिए कन्नौज पर आक्रमण किया। ग्वालियर के शासक ने भी इसमें उसका साथ दिया। युद्ध में राज्यपाल मारा गया। महमूद ने उसे अपना अपमान समझा तथा गण्ड को दण्ड देने के इरादे से उसने 1019 ई० में कालिंजर पर आक्रमण किया।

महमूद ने कालिंजर पर घेरा डाल दिया, परन्तु यह एक मजबूत किला था। महमूद अधिक समय तक इन्तजार नहीं करना चाहता था। वह गजनी वापस जाना चाहता था। अतः चन्देल शासक से सन्धि प्रस्ताव किया जिसे उसने स्वीकार करते हुए 300 हाथी महमूद को भेंट किए। इस प्रकार राजा गण्ड ने भी महमूद से संधि कर ली तथा उसे बड़ी धन राशि देना स्वीकार किया। इसके पश्चात् महमूद ने ग्वालियर के शासक अर्जुन पर 1020 ई० में हमला किया उसने थोड़े विरोध के बाद महमूद की अधीनता स्वीकार कर ली।

चौदहवां आक्रमण- पंजाब

महमूद गज़नवी ने चौदहवां आक्रमण 1020 ई. में पंजाब के विरुद्ध किया था क्योंकि उस समय पंजाब में कोई राजा नहीं था और वहां पर अव्यवस्था फैली हुई थी | महमूद गज़नवी ने पंजाब में सिक्के जारी किए जिन पर घुड़सवार और नंदी का चित्र बना हुआ था | सर्वप्रथम महमूद गज़नवी ने ही भारतीय ढंग के सिक्के जारी किए थे जिन्हें दिल्लीवाला के नाम से भी जाना जाता है |

पन्द्रहवां आक्रमण- ग्वालियर 

महमूद गज़नवी ने पन्द्रहवां आक्रमण 1022 ई. में ग्वालियर और फिर कालिंजर के विरुद्ध किया था |

सोलहवां आक्रमण – सोमनाथ पर हमला, 1025 ई०

(Attack on Somnath, 1025 A.D.)

महमूद गज़नवी ने सोलहवां आक्रमण 1025 ई. में गुजरात में स्थित सोमनाथ मंदिर के विरुद्ध किया था जिसमें महमूद के द्वारा सोमनाथ के मंदिर को बुरी तरह लूटा गया था और अंत में मूर्ति को तोड़ दिया गया था | सोमनाथ मंदिर में लगे चन्दन के दरबाजे को भी महमूद उखाड़ ले गया था परन्तु अंग्रेजों के शासनकाल में अफ़गानिस्तान से वापस लाया गया था जो आज आगरा के लाल किले में रखा हुआ है |

सौराष्ट्र (गुजरात) में सरस्वती नदी के किनारे पर स्थित सोमनाथ के मन्दिर पर हमला महमूद का सबसे प्रमुख हमला माना जाता है। यह मन्दिर हिन्दुओं की श्रद्धा का केन्द्र था। यहाँ चन्द्रग्रहण तथा सूर्यग्रहण के अवसर पर लाखों लोग एकत्र होते थे। भारत के राजाओं ने मन्दिर के खर्च के लिए बड़ी संख्या में ग्राम अनुदान में डे रखे थे | मंदिर का मंडप 56 रत्न जड़ित स्तंभों पर टिका हुआ था | ऐसा माना जाता है कि मंदिर के मध्य में सोमनाथ की मूर्ति हवा में टिकी हुई थी तथा इसका घंटा बजाने के लिए सौ मन सोने की जंजीर बनी हुई थी | सोमनाथ मंदिर की अतुलित धन संपदा से आकर्षित होकर महमूद ने अपनी समस्त सेना के साथ 17 अक्टूबर, 1024 को गजनी से कूच किया | रास्ते की सभी मुश्किलों को पार करने के लिए पहले से तैयारी की गई थी | हथियारों के साथ-साथ भोजन पानी व अन्य सामग्री की बड़े पैमाने पर व्यवस्था की गई, 30 हजार ऊंटों पर भोजन, पानी व अन्य सामग्री लादी गई थी,

जनवरी, 1025 में महमूद गजनवी गुजरात के शासक राजा भीमदेव की राजधानी आने अनहिलवाड़ा पहुंचा,  लेकिन महमूद गजनवी के आने की सूचना पाकर भीमदेव पहले की राजधानी छोड़कर भाग गया | जिन थोड़े से सैनिकों ने विरोध किया उनको आसानी से हराकर महमूद ने नगर पर अधिकार कर लिया | पूरे नगर में कत्लेआम किया गया लगभग 50 हजार लोग मारे गए, सोमनाथ की मूर्ति तोड़ दी गई तथा गजनी, मक्का और मदीना भिजवाई गई जहां पर प्रमुख मस्जिदों की सीढ़ियों में उसके टुकड़ों को लगवाया गया,

एक अनुमान के अनुसार सोमनाथ से लूटी गई संपत्ति की कीमत लगभग 20 लाख दीनार थी,  गजनी की तरफ लौटते हुए रास्ते में खोखर जाति के लोगों ने उसे तंग किया, सोमनाथ पर आक्रमण गजनवी का 16वां आक्रमण माना जाता है।

सत्तरहवां आक्रमण- जाट राजाओं के विरुद्ध 

महमूद गज़नवी ने सत्तरहवां आक्रमण 1027 ई. में सिन्ध के जाट राजाओं के विरुद्ध किया था जिसमें महमूद गज़नवी ने जाट राजाओं को बुरी तरह सिन्ध से खदेड़ कर भगाया था |

उसने अंतिम बार भारत पर आक्रमण 1026 ईस्वी में किया | उसने यह आक्रमण खोकर वंश के उन जाटों को पराजित करने के लिए किया जिन्होंने सोमनाथ के आक्रमण के समय उसका प्रतिरोध किया था | इस अभियान में भी महमूद गजनवी सफल रहा |

महमूद गजनवी के आक्रमण का उद्देश्य

Objectives of Mahmud Ghaznavi Invasion in Hindi

महमूद गजनवी ने 1000 ईस्वी से 1027 ईस्वी तक भारत पर 17 बार आक्रमण किया, उसके अनेक आक्रमण यदि राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति करते हुए नजर आते हैं तो कुछ आक्रमण केवल उसकी सनक का परिचय प्रदान करते हैं,  उसने भारत में मंदिरों को निशाना बनाया, मूर्तियों को तोड़ा, मंदिरों से बड़ी मात्रा में धन लूटकर गजनी ले गया तथा कुछ स्थानों पर अपने साम्राज्य की स्थापना की, परंतु कुछ आक्रमणों में उसने केवल रक्तपात पर भी ध्यान दिया, अतः गजनवी के आक्रमणों के उद्देश्य को लेकर इतिहासकार असमंजस की स्थिति में हैं, गजनवी के आक्रमणों के इतिहासकारों ने निम्नलिखित उद्देश्य बताए हैं —

धार्मिक उद्देश्य (Religious Motives)

कई इतिहासकारों ने गज़नवी के भारत में आक्रमणों का उद्दश्य इस्लाम धर्म का प्रसार बताया है। गज़नवी के समकालीन लेखकों में उतबी और अलबरूनी ने गजनवी के भारत आक्रमणों का उद्देश्य धार्मिक बताया है। तारीखे यामिनी के लेखक उतबी का मत है कि सिंहासन पर बैठने पर महमूद ने प्रण किया था कि वह प्रतिवर्ष भारत पर आक्रमण करेगा तथा काफिरों को हराकर इस्लाम का प्रचार-प्रसार करेगा और इसी कारण महमूद ने अपने आक्रमणों में मन्दिरों को निशाना बनाया, मूर्तियों को तोड़ा और अनेक हिन्दुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनाया |

आर्थिक उद्देश्य (Economic Motives)

प्रो० हबीब, प्रो० जाफर आदि ने गजनवी आक्रमणों के पीछे धार्मिक उद्देश्य को नकारा है, उन्होंने यह सिद्ध किया है कि वास्तव में महमूद के आक्रमणों का मुख्य उद्देश्य धन सम्पदा प्राप्त करना था। इसमें भी दो प्रकार के विचार सामने आते हैं। प्रथम, यह कि वह धन का अति लालची था। उतबी के वर्णन से भी स्पष्ट होता है कि वह भारत के धन में रुचि रखता था। यहाँ के हाथियों की भी उसे चाहत थी। वह नगरकोट (भीमनगर) से धन जीतकर जब वापस गजनी पहुंचा तो उसने जीते हुए सोने, चांदी, हीरे जवाहरात की अपने आंगन में प्रदर्शनी लगवाई तथा दूसरे देशों के राजदूतों को इस धन को देखने के लिए आमन्त्रित किया।

राजनीतिक उद्देश्य (Political Objectives)

कुछ इतिहासकारों का विचार है कि महमूद साम्राज्यवादी था तथा वह अपने साम्राज्य का प्रसार करना चाहता था। इसी कारण से उसने भारत पर आक्रमण किया तथा पंजाब को गज़नवी के साम्राज्य में मिला लिया। परन्तु यह विचार पूरी तरह स्वीकार्य नहीं है क्योंकि उसने सारे जीते हुए प्रदेशों को साम्राज्य में नहीं मिलाया और न ही उनकी व्यवस्था करने के लिए अधिकारियों को नियुक्त किया। उसने पंजाब को भी गजनी साम्राज्य में विस्तार के उद्देश्य से नहीं मिलाया बल्कि अपने आक्रमणों के लिए उसने भारत के द्वार (पंजाब) पर अधिकार किया। पंजाब को आधार बनाकर वह भारत पर बार-बार आक्रमण करता रहा। आर० सी० मजूमदार के शब्दों में, “पंजाब का विलयीकरण प्रसन्नतापूर्वक नहीं बल्कि आवश्यकता की पूर्ति के लिए किया गया था।”

मन्दिरों पर आक्रमणों का उद्देश्य

(Motives behind Attacks on Temples)

सवाल यह उठता है कि क्या महमूद ने मन्दिरों पर आक्रमण मात्र इस्लाम जगत में प्रसिद्धि प्राप्त करने या मन्दिरों से धन प्राप्त करने के लिए ही किया ? इस प्रश्न का सही उत्तर देने में सक्षम हो सकते हैं जब हम किसी भी समय में घट रही घटनाओं को सामाजिक विकास क्रम या उस घटना के सामाजिक सन्दर्भो (Social Context) में देखकर मूल्यांकन करेंगे। यह ध्यान देने योग्य तथ्य है कि पूर्व मध्यकाल में भारत में धर्म तथा राज्य के बीच गहरा सम्बन्ध था, धर्म का सहारा शासक अपनी सत्ता की वैधानिकता (Legitimacy) प्राप्त करने तथा यश प्राप्त करने के लिए करते थे,  प्रत्येक राजवंश का अपना इष्ट देव तथा राजदेवालय भी होता था।

गजनवी के आक्रमणों का भारत पर प्रभाव

Effect of Ghaznavi invasions on India in Hindi

हालांकि भारत पर गजनवी के आक्रमणों का कोई गहरा राजनीतिक प्रभाव नहीं है। इन आक्रमणों ने राजपूत राजाओं की युद्ध तकनीकों की कमियों को उजागर किया। इससे आगे पता चला कि भारत में कोई राजनीतिक एकरूपता नहीं रही है और इस मुद्दे को नियति में और अधिक हमले के लिए जाना जाता है।

महमूद गजनवी की मृत्यु

Death of Mahmud Ghaznavi

अपने अंतिम काल में महमूद गज़नवी असाध्य रोगों से पीड़ित होकर असह्य कष्ट पाता रहा था। अपने दुष्कर्मों को याद कर उसे घोर मानसिक क्लेश था। वह शारीरिक एवं मानसिक कष्टों से ग्रसित था। उसकी मृत्यु सं. 1087 (सन 1030, अप्रैल 30) में ग़ज़नी में हुई थी।

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