आज के इस पोस्ट मे छत्रपति शिवाजी की जीवन परिचय इतिहास History of Chhatrapati Shivaji in Hindi के बारे मे जानेगे। इतिहास में कुछ लोग हमेशा याद किए जाते हैं, जब भी बात भारतीय इतिहास में वीर योद्धाओ और शासको का नाम आता है, उनमे छत्रपति शिवाजी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है, जिन्होनें अपनी मातृभूमि के लिए अपनी जान की बाजी तक लगा दी। लेकिन कभी दुश्मनों के आगे घुटने नहीं टेके। जिन्होनें मुगलों के आने के बाद देश में ढलती हिंदु और मराठा संस्कृति को नई जीवनी दी। तो चलिये यहा छत्रपति शिवाजी का इतिहास जीवन परिचय युद्ध और मृत्यु History of Prithviraj Chauhan in Hindi Biography Jeevan Parichay Date Of Birth, Birth Place, Father, Mother, Wife Children, Fight, Death जानेगे.
छत्रपति शिवाजी का जीवन परिचय इतिहास युद्ध और मृत्यु
History of Chhatrapati Shivaji in Hindi
छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम सुनते ही आज भी सभी हिंदुस्तानियों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई ने हिंदू साम्राज्य की स्थापना करने का सपना देखा था, जिसे उनके पुत्र छत्रपति शिवाजी महाराज ने साकार कर दिखाया।
छत्रपति शिवाजी महाराज भारत के महान योद्धा व रणनीतिकार थे जिन्होंने मराठा साम्राज्य की नींव रखी. उन्होंने कई वर्ष औरंगजेब के मुगल सामाज्य से संघर्ष किया. सन् 1674 में रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ और छत्रपति बने.
जीजाबाई ने अपनी ही देखरेख में छत्रपति शिवाजी की शिक्षा दीक्षा पूरी की और उन्हें इस काबिल बनाया की संपूर्ण भारतवर्ष में हिंदू साम्राज्य की स्थापना की जा सके। छत्रपति शिवाजी महाराज की खासियत यह थी कि यह सभी धर्मों का आदर करते थे, साथ ही महिलाओं का सम्मान की विशेष ध्यान रखते थे।
इस पोस्ट में आप भारत भूमि में जन्मे महान योद्धा एवं रणनीतिकार छत्रपति शिवाजी के इतिहास के बारे में जानने वाले हैं. शिवाजी महान योद्धा होने के साथ ही उनमें सैनिक कुशलता कूटनीतिज्ञ और महान व्यक्तित्व वाले राजा थे. इन्हें मराठा साम्राज्य का संस्थापक माना जाता है.
भारत के इतिहास में छत्रपति शिवाजी का इतिहास बड़े ही सुन-हरे पन्नों में लिखा गया है. इन्हें भारत में ‘मराठा गौरव’ के नाम से भी जाना जाता है.
छत्रपति शिवाजी महाराज केवल मराठा जाति के ही निर्माणकर्ता नहीं थे, अपितु वह मध्यकालीन भारतवर्ष के भी निर्माण करता है, सभी जानते हैं मराठी औरंगजेब के सबसे भयंकर शत्रु थे, मराठी औरंगजेब के विरुद्ध लगभग 25 वर्ष तक लड़ते,
तो चलिये इस पोस्ट मे छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवनी इतिहास युद्ध और मृत्यु History of Prithviraj Chauhan in Hindi Biography Jeevan Parichay Date Of Birth, Birth Place, Father, Mother, Wife Children, Fight, Death के बारे मे जानते है,
छत्रपति शिवाजी का जीवन परिचय
Chhatrapati Shivaji Biography in Hindi
छत्रपति शिवाजी का जीवन परिचय : |
पूरा नाम (Name) :- शिवाजी राजे भोंसले (छत्रपति शिवाजी महाराज) |
जन्म (Birthday) :- 19 फ़रवरी 1630 (Shiv Jayanti) |
जन्म स्थान :- शिवनेरी दुर्ग, महाराष्ट्र |
मृत्यु (Death) :- 3 अप्रैल 1680, महाराष्ट्र |
पिता का नाम (Father Name) :- शाहजी राजे भोंसले |
माता का नाम (Mother Name) :- जीजाबाई |
भाई (बड़ा) :- संभाजी भोंसले |
बहिन :-नहीं |
पत्नी (Wife Name) :- सईबाई, सोयराबाई, पुतलाबाई, सक्वरबाई, काशीबाई जाधव, सगुणाबाई, लक्ष्मीबाई, तथा गुणवतीबाई. |
पुत्र :- संभाजी, राजाराम |
पुत्री :- सखुबाई, रानूबाई, अम्बिकाबाई, दीपाबाई, कमलाबाई, तथा राजकुंवरी बाई. |
पौत्र :- शाहू महाराज, शिवाजी द्वितीय |
छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक :- 6 जून, साल 1674 को रायगढ़ किले पर |
उपाधि :- छत्रपति, हिंदू धर्म सुधारक, गो ब्राह्मण प्रतिपालक, राजा |
उत्तराधिकारी राजा :- संभाजी महाराज (पुत्र) |
धर्म :- हिंदू |
साम्राज्य :- मराठा |
मृत्यु :- 3 अप्रैल 1680, रायगढ का किला, महाराष्ट्र |
छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म एवं प्रारंभिक जीवन
Birth and Early life of Chhatrapati Shivaji in Hindi
शिवाजी महाराज का जन्म 19 फ़रवरी 1630 में शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। इनके पिता का नाम शाहजी भोसलें और माता का नाम जीजाबाई था। शिवनेरी दुर्ग पुणे के पास है। उनकी माता ने उनका नाम भगवान शिवाय के नाम पर शिवाजी रखा। उनकी माता भगवान शिवाय से स्वस्थ सन्तान के लिए प्रार्थना किया करती थी।
उनके पिता का नाम उनके पिता शाहजी भोंसले, आदिल शाह के दरबार में काम करते थे तथा उनकी माता जीजाबाई पुणे में रहती थी। जिसकी वजह से शिवाजी अपने पिता से अलग तथा अपनी माता जीजाबाई के पास ही रहे। उनका बाल्यकाल दादा कोंडदेव की देखरेख में हुआ।
शिवाजी के पिताजी शाहजी भोंसले एक मराठा सेनापति थे, जो कि डेक्कन सल्तनत के लिए कार्य किया करते थे। शिवाजी के जन्म के समय डेक्कन की सत्ता तीन इस्लामिक सल्तनतों बीजापुर, अहमदनगर और गोलकोंडा में थी।
शिवाजी अपनी माँ जीजाबाई के प्रति बेहद समर्पित थे। उनकी माँ बहुत ही धार्मिक थी। उनकी माता शिवाजी को बचपन से ही युद्ध की कहानियां तथा उस युग की घटनाओं के बारे में बताती रहती थीं, खासकर उनकी माँ उन्हें रामायण और महाभारत की प्रमुख कहानियाँ सुनाती थीं। जिन्हें सुनकर शिवाजी के ऊपर बहुत ही गहरा असर पड़ा था।
इन दो ग्रंथो की वजह से वो जीवनपर्यन्त हिन्दू महत्वो का बचाव करते रहे। इसी दौरान शाहजी ने दूसरा विवाह किया और अपनी दुसरी पत्नी तुकाबाई के साथ कर्नाटक में आदिलशाह की तरफ से सैन्य अभियानो के लिए चले गए। उन्होंने शिवाजी और जीजाबाई को दादोजी कोंणदेव के पास छोड़ दिया। दादोजी ने शिवाजी को बुनियादी लड़ाई तकनीकों के बारे में जैसे कि- घुड़सवारी, तलवारबाजी और निशानेबाजी सिखाई।
छत्रपति शिवाजी ने अपनी माँ से साहस, दृढ़-निश्चय, अत्याचार का विरोध और धर्म के प्रति रुचि प्राप्त की. शिवाजी के व्यक्तित्व पर सर्वाधिक प्रभाव उनकी माँ जीजाबाई का पड़ा था. माँ के बाद शिवाजी अपने गुरो एवं संरक्षक ‘दादाजी कोंणदेव’ से प्रभावित थे.
पुस्तकीय शिक्षा में उनकी रुचि न थी परन्तु युद्ध और साहसिक कार्यों के लिए वह सदैव तत्पर रहते थे. यह कहना सर्वथा उचित हैं कि उनके चरित्र-निर्माण में जीजाबाई का बहुत बड़ा योगदान था और यह उनकी सफलता का एक मुख्य कारण बना.
शिवाजी जब 12 वर्ष के थे तब उन्हें पिता की जागीर पूना प्राप्त हुई। वे अपने साथियों के साथ तलवारबाजी, घुड़सवारी, तीर कमान इत्यादि से नकली युद्ध करते। वे रणनीति बनाते तथा शत्रु पर अचानक से आकर के आक्रमण करते। उनके सेरसेनापति हंबीरराव मोहिते थे जो सम्बंध में उनके साले थे।
1640 ई. में 12 वर्ष की आयु में शिवाजी का विवाह साईबाई निम्बालकर नाम की लड़की से कर दिया गया. शिवाजी ने ‘मावल प्रदेश‘ को अपने जीवन की प्रारम्भिक कार्यस्थली बनाया. इसके अतिरिक्त शाहजी ने अपने पुत्र की सहायता के लिए, बाद में भी, कुछ योग्य अधिकारी भेजे थे जो उनके सहायक सिद्ध हुए.
छत्रपति शिवाजी महाराज की शिक्षा
Education of Chhatrapati Shivaji Maharaj in Hindi
बड़े होने पर शाहजी ने सुयोग्य दादाजी कोंणदेव को अपने पुत्र (छत्रपति शिवाजी महाराज) का शिक्षक नियुक्त किया, शिवाजी ने पढ़ना लिखना तो नहीं था परंतु महाभारत और रामायण एवं शासन प्रबंध और युद्ध कला आदमी बहुत सा ज्ञान प्राप्त कर लिया, हथियार चलाना घुड़सवारी करना एवं दूसरी कलाएं जो सामंत पुत्र के लिए आवश्यक समझी जाती थी, उन्हें उन्होंने सीख ली, बीजापुर दरबार के संपर्क में रहने से उन्हें राज्य की दुर्बलताओं का भी ज्ञान हुआ और भविष्य में यह उनके लिए बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ|
शिवाजी को बचपन में ‘शिबू‘ के नाम से पुकारा जाता था। जैसे-जैसे छत्रपति शिवाजी महाराज की आयु बढ़ती गई इनकी माता जीजाबाई ने “समर्थ गुरु रामदास” जी के पास इन्हें उच्च शिक्षा के लिए भेजा।
फिर उनकी भेंट स्वामी रामदास से हुई, उस महापुरुष ने इनके के हृदय में हिंदू धर्म के प्रति श्रद्धा पैदा की और यह समझाया कि उनका कर्तव्य ब्राम्हण और गौ की रक्षा करना है,
तब गुरु राम दास ने इन्हें बुलाया और कहा कि शिबू आज मेरी तबीयत खराब है, मुझे ऐसे हालात में छोड़कर आप कैसे जा सकते हो? तब शिबू ने गुरु जी से कहा की हे गुरुदेव! आप आज्ञा दीजिए मुझे क्या करना है और आपकी हालत को क्या हुआ?
तब रामदास जी ने कहा कि मेरे पेट में असहनीय दर्द हो रहा है, जिसकी दवा लेकर आनी है। सभी शिष्यों को यहां पर बुलाओ। छत्रपति शिवाजी महाराज ने सभी शिष्यों को गुरुजी के पास एकत्रित किया। तब गुरु जी ने सभी शिष्यों को बताया कि मेरे पेट में असहनीय दर्द हो रहा है, जिसकी दवा लेकर आनी है और यह दवा बहुत ही दुर्लभ है जिसे हर कोई नहीं कर सकता है।
तभी सभी शिष्य एक साथ बोले “गुरु जी आप बताइए हम लेकर आ जाएंगे” तब गुरुजी ने कहा कि इस दर्द की दवा है शेरनी का दूध” इतना सुनते ही सभी शिष्यों ने अपनी अपनी गर्दन नीचे झुका ली तभी शिवाजी बोले “गुरु जी मैं लेकर आऊंगा”।
इतना कहकर अपने हाथ में एक पात्र लिए शिवाजी जंगल की ओर निकल पड़े। लेकिन उन्हें कहीं पर भी शेरनी दिखाई नहीं दी। धीरे-धीरे वह घने जंगल की ओर बढ़ते रहे वहां पर उन्हें एक झुंड में शेर और शेरनी दिखाई दी।
उस झुंड में शेरनी अपने बच्चों को दूध पिला रही थी। जैसे ही शिवाजी की नजर उस शेरनी के ऊपर पड़ी उनके चेहरे पर चमक आ गई।
वह उस झुंड की ओर बढ़ गए। शिवाजी को समीप आते देख शेर ने उनके ऊपर हमला कर दिया लेकिन शिवाजी ने अपने हाथों से उस शेर का जबड़ा चीर दिया। शिवाजी का क्रोध और रौद्र रूप देखकर शेरनी जहां की तहां खड़ी रह गई और उन्होंने शेरनी का दूध निकाला और गुरुजी के आश्रम की तरफ चल पड़े।
आसमान में चारों तरफ कड़ाके की बिजलियां चमक रही थी, घनघोर अंधेरा छाया हुआ था। ऐसे समय में छत्रपति शिवाजी शेरनी का दूध लेकर आश्रम में पहुंचे और गुरुजी को कहा ” गुरु जी आपकी आज्ञा अनुसार में शेरनी का दूध लेकर आ गया”।
तभी गुरु जी ने कहा मैं आपकी परीक्षा ले रहा था जिसमें आप उत्तीर्ण हुए। आपके पीछे-पीछे में भी जंगल में आया था और छुप कर देख रहा था मेरी नजर में इस दुनिया में वर्तमान समय में आपके जितना निडर और साहसी बालक नहीं है।
इस छोटी सी कहानी के द्वारा अंदाजा लगाया जा सकता है कि शिवाजी महाराज कितने निडर और साहसी थे। शिवाजी ने राजनीति और युद्ध की शिक्षा प्राप्त की थी।
कुछ आधुनिक इतिहासकारों का विचार है कि रामदास ने ही स्वतंत्र हिंदू राज्य स्थापना का आदर्श शिवाजी के सामने प्रस्तुत किया था,परंतु इस विचार के पक्ष में पर्याप्त प्रमाण नहीं है, सच्ची बात तो यह है कि हिंदू धर्म की रक्षा और राज्य स्थापना दोनों एक दूसरे के बिना संभव नहीं थे, वातावरण, परंपरा, शिक्षा तथा स्वभाव सभी ने उनके हृदय में मुग़ल विरोधी भावना को जाग्रत किया,
छत्रपति शिवाजी की युवा अवस्था
Young Age of Chhatrapati Shivaji History in Hindi
जैसे-जैसे छत्रपति शिवाजी महाराज बड़े होते गए वैसे-वैसे ही शिवाजी पर हिन्दू और मराठा साम्राज्य को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारियां भी आ गई. उन्ही जिम्मेदारियों के साथ शिवाजी की शक्ति और बुद्धिमानी भी बढ़ने लगी. 17 साल की उम्र में वर्ष 1646 में शिवाजी महाराज ने युद्ध करना शुरू किया. युद्ध लड़ते-लड़ते वीर शिवाजी ने तोर्ण, चाकन, कोंडाना, ठाणे, कल्याण और भिवंडी जैसे किलों को मुल्ला अहमद से जीत कर मराठा साम्राज्य में शामिल किया.
इस गतिविधि से आदिल शाह के साम्राज्य में हडकंप मच गया. शिवाजी महाराज की इस विस्तार नीति से आदिलशाह के साम्राज्य में हड़कंप मच गया और वह साहसी शिवाजी की शक्ति को देखकर घबरा गया।. उसकी सेना में छत्रपति शिवाजी के पिता शाह जी भोसले सेनाध्यक्ष थे. उसने शिवाजी को रोकने के लिए शाह जी को बंधी बनाया. ये देख कर शिवाजी ने कई वर्षों तक आदिल शाह से कोई युद्ध नहीं किया.
उन वर्षों के भीतर शिवाजी ने अपनी सेना को मज़बूत किया और देशमुखों को अपने साथ जोड़ा. शिवाजी भोसले ने उन वर्षों के भीतर एक विशाल सेना तैयार कर ली थी. इस सेना को दो अलग-अलग गुटों में बांटा गया था. सेना में घुड़सवार दल और थल सेना मौजूद थी. घुड़सवार दल की सेना की कमान नेताजी पालकर के हाथों में थी. थल सेना का नेतृत्व यशाजी कल्क के पास था. उस समय शिवाजी के साम्राज्य के अंतर्गत 40 किले आते थे.
छत्रपति शिवाजी महाराज का विवाह
Marriage of Chhatrapati Shivaji Maharaj in Hindi
छत्रपति शिवाजी महाराज की 14 मई 1640 को 12 साल की छोटी सी उम्र में सईबाई निम्बालकर के साथ शादी हुईं थी। उनका विवाह लाल महल पूणे में हुआ था, जिनसे उन्हें संभाजी महाराज इस पुत्र की प्राप्ती हुईं। आपको बता दें कि संभाजी महाराज शिवाजी महाराज के सबसे बड़े पुत्र और उत्तराधिकारी थे, जिन्होंने 1680 से 1689 तक राज्य किया।
शिवाजी महाराज की संताने
Shivaji Maharaj Children’s Name
शिवाजी महाराज की संताने |
धर्मवीर संभाजी राजे – सईबाई से हुआ पुत्र |
राजाराम – सोयराबाई से हुआ पुत्र |
सखुबाई, राणूबाई, अंबिकाबाई – सईबाई से हुयी पुत्रीया |
दीपाबाई – सोयराबाई से हुयी पुत्री |
राजकुंवरबाई- सगुणाबाई से हुयी पुत्री |
कमलाबाई – सकवारबाई से हुयी पुत्री |
छत्रपति शिवाजी का राज्याभिषेक
Coronation of Chhatrapati Shivaji in Hindi
सन 1674 ईसवी में छत्रपति शिवाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य की स्थापना की नींव रखी। इतना ही नहीं इन्होंने फारसी भाषा का विरोध किया और मराठी भाषा और संस्कृत भाषा को अपनी राजभाषा का दर्जा दिया। 1674 ईस्वी में छत्रपति शिवाजी महाराज राज्य अभिषेक करने के लिए दूतों को काशी विश्वनाथ भेजा ताकि वहां से ब्राह्मण आकर विधिवत रूप से इनका राज्य अभिषेक कर सके।
इस समय काशी में मुगलों का शासन था। जब काशी के ब्राह्मणों को यह बात पता लगी कि छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक करना है तो वह बहुत प्रसन्न हुए, साथ ही वहां जाने के लिए आतुर हो उठे।
यह बात मुगल सैनिकों को पता लग गई कि यहां से कुछ ब्राह्मण शिवाजी का राज्याभिषेक करने के लिए रायगढ़ जाना चाहते हैं तो उन्होंने उन ब्राह्मणों को कैद कर लिया। ब्राह्मणों ने दिमाग लगाते हुए मुगल सैनिकों से कहा कि हम शिवाजी का राज्याभिषेक नहीं कर सकते हैं क्योंकि ना तो हम उनके राज्य का नाम जानते हैं ना ही उनकी गोत्र के बारे में जानते हैं।
इनके बिना उनका राज्याभिषेक नहीं हो सकता है लेकिन हम तीर्थ यात्रा पर जाना चाहते हैं इसीलिए काशी छोड़कर जा रहे थे। यह बात सुनकर मुगल सैनिकों को अच्छा लगा और उन्होंने उन ब्राह्मणों को छोड़ दिया। लेकिन शिवाजी द्वारा भेजे गए दूतों को उन्होंने बंदी बना लिया और “मुगल बादशाह औरंगजेब” के पास दिल्ली भेज दिया। हालांकि दिल्ली जाने के बाद भी यह वहां से सुरक्षित निकल कर पुनः छत्रपति शिवाजी के पास पहुंच गए।
कुछ ही समय में काशी से निकले ब्राह्मण रायगढ़ पहुंच गए और छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक विधिवत रूप से किया। छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के लगभग 12 दिन के बाद इनके माता जीजाबाई का देहांत हो गया। माता के देहांत के पश्चात 4 अक्टूबर 1674 को पुनः राज्याभिषेक का कार्यक्रम आयोजित किया गया।
इसके बाद शिवाजी ने अष्टप्रधान मंडल की स्थापना कि। विभिन्न राज्यों के दूतों, प्रतिनिधियों के अलावा विदेशी व्यापारियों को भी इस समारोह में आमंत्रित किया गया। इस समारोह में लगभग रायगढ़ के 5000 लोग इकट्ठा हुए थे। शिवाजी को छत्रपति का खिताब दिया गया। उनके राज्याभिषेक के 12 दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया। इस कारण फिर से 4 अक्टूबर 1674 को दूसरी बार उनका राज्याभिषेक हुआ। दो बार हुए इस समारोह में लगभग 50 लाख रुपये खर्च हुए। इस समारोह में हिन्दू स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया गया था।
छत्रपति शिवाजी महाराज “शुक्राचार्य और कौटिल्य” को आदर्श मानते थे। अष्टप्रधान नामक इनके आठ मंत्रियों की एक परिषद थी। इन मंत्रियों के प्रधान को “पेशवा” नामक उपाधि प्रदान की जाती थी। छत्रपति शिवाजी महाराज के इस पद पर बाजीराव पेशवा विराजमान थे। राजा के बाद यह सबसे महत्वपूर्ण स्थान था।
वित्त और राजस्व का काम देखने वाले को “अमात्य” कहा जाता था। मंत्री राजा के दैनिक कार्यों की निगरानी रखता था।
दफ्तर के कार्य जैसे मोहर लगाना संधि के पत्रों से आलेख तैयार करना आदि कार्य जो करता था उसे सचिव के पद से सम्मानित किया गया था। विदेश मंत्री को सुमंत के नाम से तथा सेना के प्रधान को सेनापति के नाम से औरदान पुण्य और धार्मिक मामले देखने वाले व्यक्ति को “पंडितराव” के नाम से पुकारा जाता था।
लड़ाई झगड़े और न्यायिक मामलों के लिए नियुक्त व्यक्ति को न्यायाधीश की उपाधि से सम्मानित किया गया था। मराठा साम्राज्य तीन -चार भागों में विभाजित था। प्रत्येक प्रांत को एक सूबेदार दिया जाता था। शिवाजी अपने आप को “सरदेशमुख” मानते थे जोकि मराठों के राजा होते हैं।
इसलिए यह सरदेशमुख टैक्स वसूलते थे। इनके समय में “चौथकर” काफी प्रचलन हुआ। “चौथ” कर दूसरे राज्यों की सीमाओं पर लगने वाला टैक्स था जो कि उस राज्य को सुरक्षा प्रदान करता था।
रामचंद्र अमात्य को इन्होंने एक महत्वपूर्ण काम सौंपा। जितने भी ग्रंथ थे जिनमें फारसी भाषा का प्रयोग हुआ था उन्हें इससे निकालकर उनकी जगह संस्कृत के शब्दों को उपयोग में लेने की सलाह दी। इस समय उनके राज्य में एक बहुत बड़ा विद्वान रहता था जिसका नाम “धुंधीराज” था। इन दोनों ने मिलकर 1350 नई संस्कृत शब्दों का समावेश करते हुए “राज्य व्यवहार कोश” नामक ग्रंथ की रचना की।
शिवाजी महाराज का बीजापुर के सुल्तान आदिलशाही साम्राज्य पर आक्रमण
Shivaji Maharaj’s invasion of the Sultan Adilshahi kingdom of Bijapur in Hindi
उस समय बीजापुर का सुल्तान मोहम्मद आदिलशाह था। वह एक निर्दयी तथा क्रूर शासक था जिसने अपने राज्य में अन्याय फैला रखा था। सैनिकों तथा राजकुमारों का बहुत ही क्रूर व्यवहार शिवाजी को पसंद नहीं आया।
एक बार शिवाजी अपने पिता साहब जी के साथ बीजापुर गए हुए थे। वहां पर बाजार में उन्होंने देखा कि एक कसाई गाय को पीटता हुआ उसे बूचड़खाने में काटने के लिए ले जा रहा है। शिवाजी से ऐसा करुण दृश्य देखा नहीं गया उन्होंने अपनी तलवार से रस्सी को काटकर गाय को मुक्त कर दिया।
जब शिवाजी अपने पिता शाह जी के साथ दरबार में पेश हुए तब उन्होंने आदिलशाह के सामने सर नहीं झुकाया। उनके पिता ने उन्हें समझाया कि बेटा वह सुल्तान है और उनके सामने सर झुकाना हम सबका कर्तव्य है। तो शिवाजी ने अपने पिता से कहा कि है सिर या तो आपके सामने झुक सकता है या फिर मां साहिब के सामने।
शिवाजी महाराज ने वर्ष 1645 में, आदिलशाह सेना को बिना सूचित किए कोंड़ना किला पर हमला कर दिया। इसके बाद आदिलशाह सेना ने शिवाजी के पिता शाहजी को गिरफ्तार कर लिया। आदिलशाह सेना ने यह मांग रखी कि वह उनके पिता को तब रिहा करेगा जब वह कोंड़ना का किला छोड़ देंगे। उनके पिता की रिहाई के बाद 1645 में शाहजी की मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यु के बाद शिवाजी ने फिर से आक्रमण करना शुरू कर दिया।
शिवाजी का अफजल खान से युद्ध
Shivaji war with Afzal Khan in Hindi
शिवाजी के जीवन की सबसे चर्चित और महत्वपूर्ण घटना थी. सन् 1659 में बीजापुर की बड़ी साहिबा ने अफज़ल खान को 10 हज़ार सैनिकों के साथ शिवाजी राजे पर आक्रमण करने के लिए भेज दिया. ऐसा माना जाता है कि अफज़ल खान शिवाजी से दो गुना शक्तिशाली था. लेकिन शक्ति से ही सबकुछ नहीं होता. बुद्धिमत्ता ही मनुष्य की सबसे बड़ी पूँजी है. अफज़ल खान बहुत निर्दयी था. अफज़ल खान ने युद्ध से पहले बीजापुर से प्रतापगढ़ किले तक कई मंदिरों को तोड़ा और कई बेगुनाह लोगों को मारा डाला. उसने सोचा की अगर मैं मंदिर तोड़ दूंगा तो शिवाजी बाहर आयेंगे. हुआ भी ऐसा ही शिवाजी महाराज की सेना ने अफज़ल खान से छापामार तरीके से युद्ध लड़ा.
वर्ष 1659 में, आदिलशाह ने अपने सबसे बहादुर सेनापति अफज़ल खान को शिवाजी को मारने के लिए भेजा। शिवाजी और अफज़ल खान 10 नवम्बर 1659 को प्रतापगढ़ के किले के पास एक झोपड़ी में मिले। दोनों के बीच एक शर्त रखी गई कि वह दोनों अपने साथ केवल एक ही तलवार लाए गए।
शिवाजी को अफज़ल खान पर भरोसा नही था और इसलिए शिवाजी ने अपने कपड़ो के नीचे कवच डाला और अपनी दाई भुजा पर बाघ नख (Tiger’s Claw) रखा और अफज़ल खान से मिलने चले गए। अफज़ल खान ने शिवाजी के ऊपर वार किया लेकिन अपने कवच की वजह से वह बच गए, और फिर शिवाजी ने अपने बाघ नख (Tiger’s Claw) से अफज़ल खान पर हमला कर दिया। हमला इतना घातक था कि अफज़ल खान बुरी तरह से घायल हो गया, और उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद शिवाजी के सैनिकों ने बीजापुर पर आक्रमण कर दिया।
शिवाजी ने 10 नवम्बर 1659 को प्रतापगढ़ के युद्ध में बीजापुर की सेना को हरा दिया। शिवाजी की सेना ने लगातार आक्रमण करना शुरू कर दिया। शिवाजी की सेना ने बीजापुर के 3000 सैनिक मार दिए, और अफज़ल खान के दो पुत्रों को गिरफ्तार कर लिया। शिवाजी ने बड़ी संख्या में हथियारों ,घोड़ों और दुसरे सैन्य सामानों को अपने अधीन कर लिया। इससे शिवाजी की सेना और ज्यादा मजबूत हो गई, और मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे मुगल साम्राज्य का सबसे बड़ा खतरा समझा।
छत्रपति शिवाजी का मुगलों से संघर्ष – शाइस्ता खान से युद्ध
Chhatrapati Shivaji’s struggle with the Mughals – War with Shaista Khan in Hindi
उस समय दिल्ली की गद्दी पर बादशाह औरंगजेब का शासन था. औरंगजेब भी शिवाजी की बढ़ती शक्ति को देख कर आतंकित था. उसने तुरंत ही शिवाजी के खिलाफ, अपने मामा शाइस्ता खां को डेढ़ लाख की सेना के साथ कूच करने का आदेश दिया. शक्तिशाली सेना के दम पर मुगलों ने शिवाजी के निवास स्थान लाल महल पर कब्जा कर लिया. और शिवाजी को वहां से भागना पड़ा.
लेकिन शिवाजी और उसके 350 सैनिकों ने बारातियों के वेश धारण कर लाल महल में घुस गए. रात के समय में शिवाजी ने शाइस्ता खां पर जोरदार हमला कर दिया. इस हमले में शाइस्ता खान खिड़की से कूदकर बच निकला. लेकिन शिवाजी के वार से उसे अपनी चार उंगलियां गवानी पड़ी. उंगली तो गई और इज्जत भी. यहां शाइस्ता खां के पुत्र अबुल फतेह मारा गया.
औरंगजेब ने शाइस्ता खान की इस असफलता से नाराज होकर उसे बंगाल भेज दिया। इसके बाद औरंगजेब ने शहजादा मुअज्जम तथा मारवाड़ के जसवंत सिंह को शिवाजी को दबाने के लिए भेजा। परंतु वे दोनों भी असफल रहे।
छत्रपति शिवाजी महाराज का सूरत पर अधिकार
Chhatrapati Shivaji Maharaj’s right over Surat in Hindi
इस जीत के बाद शिवाजी की शक्ति और ज्यादा मजबूत हो गई थी। लेकिन कुछ समय बाद शाइस्ता खान ने अपने 15,000 सैनिकों के साथ मिलकर शिवाजी के कई क्षेत्रो को जला कर तबाह कर दिया, बाद में शिवाजी ने इस तबाही का बदला लेने के लिए मुगलों के क्षेत्रों में जाकर लूटपाट शुरू कर दी। सूरत उस समय हिन्दू मुसलमानों का हज पर जाने का एक प्रवेश द्वार था। शिवाजी ने 4 हजार सैनिकों के साथ सूरत के व्यापारियों को लूटने का आदेश दिया, लेकिन शिवाजी ने किसी भी आम आदमी को अपनी लूट का शिकार नहीं बनाया।
छत्रपति शिवाजी का राजा जय सिंह से पुरन्दर की संधि
Chhatrapati Shivaji’s Treaty of Purandar with Raja Jai Singh in Hindi
साहसी और वीर शिवाजी महाराज से लगातार अपनी हार के बाद मुगल शासक औरंगजेब और भी ज्यादा बौखला गया और इस घटना का बाद उसने शिवाजी महाराज से युद्ध करने के लिए अपने सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली सेनापति मिर्जा राजा जयसिंह भेजा।
करीब 1 लाख सैनिकों के साथ राजा जयसिंह, अत्यंत साहसी और वीर योद्धा शिवाजी महाराजा से युद्ध करने के लिए पहुंचे थे, दरअसल जयसिंह को शिवाजी महाराज की शक्ति का अंदाजा हो गया था।
इसलिए वह इस बार रणनीति बनाकर शिवाजी महाराज से मुकाबला करने के लिए निकला था और इसके लिए उसने बीजापुर के सुल्तान के साथ मिलकर शिवाजी महाराज को हराने की योजना बनाई थी।
इस दौरान राजा जय सिंह ने पराक्रमी शिवाजी महाराज को पराजित कर दिया था, जिसके बाद साहसी योद्धा शिवाजी महाराज को मुगल सल्तनत को करीब 23 किले देने पड़े थे। दरअसल, जयसिंह जब शिवाजी महाराज से मुकाबला कर रहा था तो उस दौरान उसने उन सभी किलों को जीत लिया था, जिनको शिवाजी महाराज ने जीते थे, वहीं इस पराजय के बाद शिवाजी महाराज को मुगलों के साथ समझौता भी करना पड़ा था। वहीं इस दौरान जयसिंह ने अपनी रणनीति के मुताबिक 24 अप्रैल, 1665 में व्रजगुढ़ के किले पर अपना कब्जा कर लिया था।
वहीं इस दौरान पुरन्दर के किले की रक्षा करते हुए शिवाजी महाराज का सबसे साहसी और वीर सेनापति ‘मुरार जी बाजी’ मारा गया। इस दौरान शिवाजी महाराज को अंदेशा हो गया था कि पुरन्दर के किले को बचा पाना थोड़ा मुश्किल है, इसी वजह से उन्होंने महाराजा जयसिंह से संधि की पेशकश की। वहीं दोनों नेता संधि की शर्तों पर पूरी तरह से सहमत हो गए और 22 जून, 1665 ई. को ‘पुरन्दर की सन्धि’ हुई थी।
पुरंदर की संधि के कई नियम थे जैसे कि-
- शिवाजी के द्वारा अपने 23 किलों को मुगलों को लौटा देना।
- आवश्यकता पड़ने पर बीजापुर को सहायता प्रदान करना।
- शिवाजी का मुगल दरबार में उपस्थित होना आवश्यक नहीं है।
जयसिंह ने शिवाजी को आगरा जाने के लिए पूछा। शिवाजी ने हामी भरी क्योंकि उन्होंने मुगलों व उत्तर भारत को जानने के लिए एक सही मौका समझा।
औरंगजेब का आगरा मे छत्रपति शिवाजी का अपमान
Aurangzeb insulted Chhatrapati Shivaji in Agra in Hindi
औरंगजेब चाहता था कि छत्रपति शिवाजी महाराज खुद उनसे मिलने के लिए आगरा आए। जब औरंगजेब ने उन्हें सुरक्षा का पूर्ण आश्वासन दिया तो छत्रपति शिवाजी महाराज 1666 में औरंगजेब से मिलने के लिए आगरा पहुंचे।
शिवाजी के साथ में उनका पुत्र संभाजी तथा लगभग 4000 मराठा सैनिक थे। औरंगजेब के दरबार में शिवाजी का आदर और सत्कार नहीं हुआ बल्कि उल्टा इन का तिरस्कार किया गया और हास्य का पात्र बनाया गया।
जिससे क्रोधित होकर शिवाजी ने औरंगजेब को विश्वासघाती और धोखेबाज जैसे शब्दों से संबोधित किया इस वजह से औरंगजेब ने छत्रपति शिवाजी महाराज को बंदी बना लिया.
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छत्रपति शिवाजी महाराज का आमेर से बच निकलना
Escape of Chhatrapati Shivaji Maharaj from Amber in Hindi
शिवाजी महाराज को आगरा बुलाया गया जहां उन्हें लागा कि उनको उचित सम्मान नहीं दिया गया है। इसके खिलाफ उन्होंने अपना रोष दरबार पर निकाला और औरंगजेब पर छल का आरोप लगाया। औरंगजेब ने शिवाजी को कैद कर लिया और शिवाजी पर 500 सैनिकों का पहरा लगा दिया। हालांकि उनके आग्रह करने पर उनकी स्वास्थ्य की दुआ करने वाले आगरा के संत, फकीरों और मन्दिरों में प्रतिदिन मिठाइयाँ और उपहार भेजने की अनुमति दे दी गई थी।
कुछ दिनों तक यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहा। एक दिन शिवाजी ने संभाजी को मिठाइयों की टोकरी में बैठकर और खुद मिठाई की टोकरी उठाने वाले मजदूर बनकर वहा से भाग गए। इसके बाद शिवाजी ने खुद को और संभाजी को मुगलों से बचाने के लिए संभाजी की मौत की अफवाह फैला दी। इसके बाद संभाजी को मथुरा में एक ब्राह्मण के यहाँ छोड़ कर शिवाजी महाराज बनारस चले गए।
औरंगजेब ने जयसिंह पर शक करके उसकी हत्या विष देकर करवा डाली। जसवंत सिंह (शिवाजी का मित्र) के द्वारा पहल करने के बाद सन् 1668 में शिवाजी ने मुगलों के साथ दूसरी बार सन्धि की। औरंगजेब ने शिवाजी को राजा की मान्यता दी। शिवाजी के पुत्र संभाजी को 5000 की मनसबदारी मिली और शिवाजी को पूना, चाकन और सूपा का जिला लौटा दिया गया, लेकिन, सिंहगढ़ और पुरन्दर पर मुग़लों का अधिपत्य बना रहा। सन् 1670 में सूरत नगर को दूसरी बार शिवाजी ने लूटा, नगर से 132 लाख की सम्पत्ति शिवाजी के हाथ लगी और लौटते वक्त शिवाजी ने एक बार फिर मुगल सेना को सूरत में हराया।
औरंगजेब ने उसने संधि के बाद भी शिवाजी के विरुद्ध हमेशा कुछ न कुछ तैयार रखा। जिसके कारण शिवाजी ने वापस संधि के नियमों को तोड़ते हुए उन सभी किलों पर अधिकार कर लिया जो उन्होंने खोए थे।
छत्रपति शिवाजी महाराज का चरित्र
Character of Chhatrapati Shivaji Maharaj in Hindi
शिवाजी महाराज ने अपने पिता से स्वराज की शिक्षा हासिल की, जब बीजापुर के सुल्तान ने उनके पिता को गिरफ्तार कर लिया था तो शिवाजी ने एक आदर्श पुत्र की तरह अपने पिता को बीजापुर के सुल्तान से सन्धि कर के छुड़वा लिया। अपने पिता की मृत्यु के बाद ही शिवाजी ने अपना राज-तिलक करवाया। सभी प्रजा शिवजी का सम्मान करती थी,
और यही कारण है कि शिवाजी के शासनकाल के दौरान कोई आन्तरिक विद्रोह जैसी घटना नहीं हुई थी। वह एक महान सेना नायक के साथ-साथ एक अच्छे कूटनीतिज्ञ भी थे। वह अपने शत्रु को आसानी से मात दे देते थे।
छत्रपति शिवाजी महाराज की नीतियां
Policies of Chhatrapati Shivaji Maharaj in Hindi
धार्मिक नीति (Religious Policy)
छत्रपति शिवाजी महाराज की नीतियां |
शिवाजी एक हिंदू शासक थे जो धर्म सहिष्णु भी थे। उन्होंने किसी भी धर्म के व्यक्ति के साथ कभी भी भेदभाव नहीं किया। |
उनके लिए हर हिंदू उतना ही महत्वपूर्ण था जितना हर एक मुसलमान। उनकी सेना में मुसलमान तथा हिंदू सैनिक थे। |
उन्होंने अपनी सभी प्रजा को धर्म को मानने की आजादी दी तथा उन्हें अपने पूजा-पाठ या नमाज पढ़ने के लिए भी खुली आजाद दी। |
शिवाजी ने मुस्लिम पीरों, फकीरों को दान दिया तथा उन्हें आर्थिक सहायता भी प्रदान की। |
उन्होंने अपने सैनिकों को भी प्रशिक्षित किया था। ऐसा कहा जाता है कि अगर उनके किसी भी सैनिक को युद्ध भूमि में कुरान मिल जाती थी तो वह अपने मुस्लिम भाई को सौंप देते थे। |
सामाजिक नीति (Social Policy)
- शिवाजी महाराज सभी इंसानों को महत्त्व देते थे।
- उन्होंने कभी भी किसी भी महिला के साथ दुर्व्यवहार या अपमान नहीं किया।
- उन्होंने हर एक वैवाहित स्त्री को अपना मां समझा।
शिवाजी महाराज के औरतों के प्रति विचार
Thoughts Of Shivaji Maharaj Towards Women In Hindi
बीजापुर के मुल्ला ने अपनी सुन्दर पुत्रवधू शिवाजी को भेंट की क्योंकि उसके पति का देहांत हो गया था। परंतु उन्होने उस स्त्री को वापस भिजवा दिया।
ऐसा कहा जाता है कि एक युद्ध जीतने के बाद शिवाजी के सैनिक एक स्त्री को उठा लाए थे। जब शिवाजी ने पूछा कि ये क्या लाये हो? तब सैनिको ने बताया कि यह उनके लिए सुन्दर उपहार है।
तो शिवाजी ने जानने की कोशिश की कि ऐसा क्या उपहार है। उन्होंने पेटी को खुलवाने का आदेश दिया। पेटी को खोला गया तो पता चला कि इसमें तो एक स्त्री है। शिवाजी गुस्से से क्रोधित हो आये। उनकी आंखों से पानी आ गया।
उन्होने उस स्त्री के पैर पड़कर कहा कि हे माता! मेरे सैनिको से गलती हो गई. आप हमें माफ कर दीजिए। आपको अपने घर सकुशल पहुँचा दिया जायेगी।
इसके बाद शिवाजी ने अपने सभी सैनिकों को आदेश दिया कि आज के बाद अगर किसी ने भी किसी भी स्त्री का अपमान किया या उसके तरफ गलत नजरों से देखा तो उसका गला वहीं काट दिया जायेगा।
मराठा साम्राज्य की स्थापना
Establishment of Maratha Empire in Hindi
छत्रपति शिवाजी ने 1674 ईस्वी में अपनी राजधानी के रूप में रायगढ़ को निर्मित किया और इसके साथ ही साथ उन्होंने एक स्वतंत्र स्वामित्व वाले मराठा साम्राज्य (Maratha Empire) की स्थापना की। मराठा साम्राज्य ने लगभग 150 वर्षों तक शासन कार्य किया और इस वंश को भारतीय इतिहास के शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक माना जाता है।
इस वंश के कार्यकाल में मराठा साम्राज्य के कई शासकों ने अपने राज्य का विस्तार किया| हिंदुओं ने मराठा शासकों को उनके नेता के रूप में समर्थन दिया और साथ ही साथ कई मुस्लिमों ने उनका समर्थन किया,
अपने राजकाल के दौरान शिवाजी महराज ने एक बड़ी और शसक्त सेना का गठन किया और शक्तिशाली मुगल साम्राज्य से अपने क्षेत्र का बचाव किया। यहां तक कि, उनकी मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारियों ने मराठा साम्राज्य की गरिमा की सफलतापूर्वक रक्षा की। शिवाजी ने 2 अप्रैल 1680 को अपनी मृत्यु तक मराठा साम्राज्य पर शासन किया था और इसके पश्चात उनके उत्तराधिकारियों ने राज कार्य को आगे बढ़ाया..
छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा चलाया गया सिक्का
Coin issued by Chhatrapati Shivaji Maharaj in Hindi
शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के 12 दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया था इस कारण से 4 अक्टूबर 1674 को दूसरी बार शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि ग्रहण की. इस समारोह में हिन्दू स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया गया था. विजयनगर के पतन के बाद दक्षिण में यह पहला हिन्दू साम्राज्य था.एक स्वतंत्र शासक की तरह उन्होंने अपने नाम का सिक्का चलवाया.
ये राजमुद्रा संस्कृत भाषा में थी। जिस पर संस्कृत मे लिखा गया था –
“प्रतिपच्चंद्रलेखेव वर्धिष्णुर्विश्ववंदिता शाहसुनोः शिवस्यैषा मुद्रा भद्राय राजते”
शिवाजी महाराज की मृत्यु
Death of Shivaji Maharaj in Hindi
मराठा गौरव’ कहलाने वाले छत्रपति शिवाजी का सन 1680 में बीमारी के चलते स्वर्गवास हो गया. हालांकि कई इतिहासकारों का मत है कि, उन्हें जहर दिया गया था. शिवाजी की मृत्यु के बारे में कई इतिहासकारों में मतभेद है. मात्र 52 वर्ष की आयु में शिवाजी की मृत्यु हो गई थी. मराठा के लिए यह एक बहुत बड़ी हानि थी. लगभग 6 वर्षों तक इन्होंने स्वतंत्र रूप से सुव्यवस्थित शासन किया. शिवाजी की मृत्यु के बाद उनके बड़े पुत्र संभाजी महाराज, मराठा साम्राज्य के उत्तराधिकारी नियुक्त किए गए.
“शिवाजी जैसे व्यक्तित्व वाले इंसान कभी मरते नहीं, हमेशा लोगों के दिलों में अमर रहते हैं”
शिवाजी महाराज से जुड़ी प्रमुख तिथियाँ और घटनाएँ
Major Dates and Events of Shivaji Maharaj in Hindi
शिवाजी महाराज से जुड़ी प्रमुख तिथियाँ और घटनाएँ |
1594 : शिवाजी के पिता शाहजी भोंसले का जन्म |
1596 : माँ जीजाबाई का जन्म |
19 फ़रवरी,1630 : शिवाजी का जन्म |
1630 : से 1631 तक महाराष्ट्र में अकाल |
14 मई 1640 : शिवाजी और साईबाई का विवाह |
1646 : शिवाजी ने पुणे के पास तोरण दुर्ग पर अधिकार कर लिया |
1656 : शिवाजी ने चन्द्रराव मोरे से जावली जीता |
10 नवंबर, 1659 : शिवाजी ने अफजल खान का वध किया |
1659 : शिवाजी ने बीजापुर पर अधिकार कर लिया |
6 से 10 जनवरी, 1664 : शिवाजी ने सूरत पर धावा बोला और बहुत सारी धन-सम्पत्ति प्राप्त की |
1665 : शिवाजी ने औरंगजेब के साथ पुरन्धर शांति सन्धि पर हस्ताक्षर किया |
1666 : शिवाजी आगरा कारावास से भाग निकले |
1667 : औरंगजेब राजा शिवाजी के शीर्षक अनुदान। उन्होंने कहा कि कर लगाने का अधिकार प्राप्त है |
1668 : शिवाजी और औरंगजेब के बीच शांति सन्धि |
1670 : शिवाजी ने दूसरी बार सूरत पर धावा बोला |
1674 : शिवाजी ने रायगढ़ में ‘छत्रपति’ की पदवी धारण की। 18 जून को जीजाबाई की मृत्यु |
1680 : शिवाजी की मृत्यु |
छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़ी अहम बातें
Important things related to Chhatrapati Shivaji Maharaj in Hindi
छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़ी अहम बातें |
शिवाजी महाराज में संगठन शक्ति अतुलनीय थी| उन्होंने बिखरे हुए मराठा सैनिकों एवं राजाओं को एकत्रित किया और उनकी शक्ति को एकजुट करके एक स्वतंत्र एवं महान मराठा राज्य की स्थापना की| |
शिवाजी महाराज मराठा साम्राज्य के संस्थापक है जिन्होनें पूरे देश में मराठा लहर को हवा दी थी। |
वह एक आज्ञाकारी पुत्र एवं आज्ञाकारी शिष्य थे, इतिहास-कारों के मतानुसार वह अपनी माता और गुरु की हर आज्ञा का पालन करते थे, |
छत्रपति शिवाजी महाराज ने औंरगजेब के सैनिकों को हराकर मुगलों के आधीन सूरत को दो बार लूटा। |
शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक को लेकर कहा जाता है कि मुगलों ने देश के सभी ब्राह्मणों को डराया था जिस पर छत्रपित शिवाजी महाराज ने कसम खाई थी कि वो अपना राज्यभिषेक मुगल शासित राज्य के ब्राह्मण से ही करवाएँगे। जिसके बाद काशी के ब्राह्मणों दारा शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया गया था। जो उस समय मुगलों के आधीन था। |
छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने शासन के दौरान 8 अद्भुत किलों का निर्माण कराया जिनमें से रायगढ़, सिंधुदुर्ग का किला, सुवर्णदुर्ग का किला (गोल्डन फोर्ट), पुरंदर का किला प्रमुख है। |
छत्रपति शिवाजी महाराज ने ही गुरिल्ला वार को नया रुप दिया था। और इसे देश में प्रचलित किया था। माना जाता है कि शिवाजी महाराज ने शिवनेरी किले पास मौजूद गुफाओँ में गुरिल्ला वार ट्रेनिंग ली थी। |
शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के 12 दिन बाद उनकी माता जिजाबाई का देहांत हो गया था। |
छत्रपति शिवाजी महाराज ने मराठा और संस्कृत भाषाओं को दोबारा देश में महत्व दिलाया। |
छत्रपति शिवाजी महाराज की याद में अरब सागर के एक द्वीप पर उनके अब तक के सबसे बड़े स्मारक की आधारशिला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में रखी थी। रिपोर्टस के अनुसार ये स्मारक तैयार होने के बाद विश्व का सबसे बड़ा स्मारक कहलाएगा। |
छत्रपति शिवाजी महाराज एक वीर योद्धा थे उनके जैसे वीर योद्धा भारतीय इतिहास में बहुत कम ही हुए हैं, उनके रणक्षेत्र की कहानियां आज भी लोगों के उत्साह को बढ़ा देती हैं, |
छत्रपति शिवाजी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर FAQ
Some important questions and answers related to Chhatrapati Shivaji in Hindi
प्रश्न : छत्रपति शिवाजी का पूरा नाम क्या है?
उत्तर- छत्रपति शिवाजी महाराज का पूरा नाम “शिवाजी राजे भोंसले” हैं।
प्रश्न :छत्रपति शिवाजी महाराज कौन थे ?
उत्तर- एक महान बहादुर एवं प्रगतिशील शासकों में से एक जिन्होंने मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी.
छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म कब हुआ ?
उत्तर- 19 फरवरी, 1630 में
छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती कब है ?
उत्तर- 19 फरवरी
प्रश्न : शिवाजी महाराज की कितनी पत्नियां थी?
उत्तर- शिवाजी महाराज की 8 पत्नियां थी जिनके नाम यह थे- सईबाई, सोयराबाई, पुतलाबाई, सक्वरबाई, काशीबाई जाधव, सगुणाबाई, लक्ष्मीबाई, तथा गुणवतीबाई।
प्रश्न : शिवाजी महाराज के कितने पुत्र थे?
उत्तर- 2 पुत्र – संभाजी और राजाराम प्रथम।
प्रश्न : छत्रपति शिवाजी की कितनी पुत्रियां थी?
उत्तर- शिवाजी महाराज की 6 पुत्रियां थी। जिनके नाम यह थे- सखुबाई, रानूबाई, अम्बिकाबाई, दीपाबाई, कमलाबाई, तथा राजकुंवरी बाई।
प्रश्न : शिवाजी महाराज का जन्म कहां हुआ था?
उत्तर- शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1627 को शिवनेर के पहाड़ी किले में, पुणे ( वर्तमान पुना,महाराष्ट्र) में हुआ था।
प्रश्न : शिवाजी महाराज के माता पिता कौन थे?
उत्तर- शिवाजी महाराज के पिता शाहजी भोंसले मुगलों के दरबार में काम करते थे। तथा उनकी माता जीजाबाई पुणे की जागीर संभालती थी।
प्रश्न : शिवाजी महाराज की मृत्यु कब तथा कैसे हुई थी?
उत्तर- शिवाजी महाराज की मृत्यु 3 अप्रैल 1680 को रायगढ़ के किले (पुणे) में हुई थी।
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